पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३४

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6 . वरुण ब्रह्मा प्रलय का जल बेरखा नदी- तट पर बसी सुषा नगरी तक नहीं पहुंचा था । फिर भी कुछ लोग मर गए, कुछ छोड़कर चले गए। सुषा नगरी, जो मन्युपुरी भी कहाती थी , उजाड़ और वीरान बहुत दिन तक पड़ी रही । उस पर पांच फीट मोटा धूलि - स्तर जम गया । इसके बाद जब स्वायंभुव मनु के अन्तिम प्रजापति दक्ष का अधिकार समाप्त हुआ , तब दक्ष की पुत्री अदिति का पुत्र वरुण ; सूर्य का सबसे बड़ा भाई , सुषा नगरी में आया । उसने उसे खुदवाकर साफ किया - धूल -मिट्टी दूर की । ऊंची-नीची भूमि समतल की । रुके हुए जलों को नहर खुदवाकर समुद्रों में बहा दिया और सुषा -प्रदेश और मेसोपोटामिया में आदित्यों की बस्तियां बसाईं । पाठकों को ज्ञात हो , अदिति से मरीचि को बारह पुत्र हुए, जो आदित्य कहाए । वरुण उनमें सबसे बड़े और सूर्य सबसे छोटे थे। परन्तु आगे चलकर जैसे सूर्यकुल ने आर्य जाति का निर्माण किया , उसी प्रकार वरुण ने सुमेर जाति को जन्म दिया । यह सुमेर जाति सुमेर - सभ्यता की प्रस्तारक और ईरान की प्राचीन शासक हुई। संसार के पुरातत्त्वविद् डॉक्टर फ्रेंकफोर्ट और लेंग्डन आदि कहते हैं कि प्रोटोइलामाइट सभ्यता का ही विकसित रूप सुमेरु - सभ्यता है; अर्थात् प्रोटोइलामाइट सभ्यता से ही सुमेरु- सभ्यता का जन्म हुआ । प्रोटोइलामाइट जाति प्रलय के कारण स्वदेश वापस चली गई और वहां इसकी सभ्यता का विकास हुआ । इस विकसित सभ्यता का ही नाम सुमेरु - सभ्यता हुआ । सुमेरु जाति फिर प्रोटोइलामाइट लोगों के निवास स्थान पर इलाम और मेसोपोटामिया में बस गई । प्रोटोइलामाइट जाति का स्वदेश कौन था और वह प्रलय के बाद कहां चली गई , तथा कहां से पुन : सुमेरु - सभ्यता को लेकर मेसोपोटामिया में आ गई, संसार के पुरातत्त्वविद् अभी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाए हैं , परन्तु इस प्रश्न का उत्तर हमारे पुराणों में है, और वह यह कि जिसे प्रोटोइलामाइट जाति कहा गया है वह चाक्षुष जाति थी , जिसके छ: महारथियों ने बलोचिस्तान और ईरान होते हुए इलाम और मेसोपोटामिया को जय करके अपने राज्य स्थापित किए थे तथा वह भारतवर्ष के ही दक्षिण - पश्चिम इलाके में उससे पूर्व विकसित हुई थी तथा सुमेरु- सभ्यता के संस्थापक - एक प्रकार से दुबारा नई सृष्टि रचने वाले सूर्य के ज्येष्ठ भाई, वरुण थे, और उन्हें ही ब्रह्मा के नाम से विख्यात किया गया है । यह एक मार्क की बात है कि केवल सूर्य के ही वंशघर भारत में आर्य- जाति में संगठित हुए । परन्तु शेष ग्यारहों आदित्य ईरान , मिस्र, पैलेस्टाइन , अरब और चीन , तिब्बत तक फैल गए । इन सबने देव जाति का संगठन किया । संक्षेप में देव का अर्थ है - आदित्य । मन्युपुरी वरुण के काल में सुषा के नाम से विख्यात रही, पीछे इन्द्रपुरी अमरावती के नाम से विख्यात हुई। पाश्चात्य जन वरुण को लार्ड क्रियेटर कहते हैं जिसका अर्थ है देवकर्तार ब्रह्मा। अवेस्ता में वरुण को अरूंज्द कहा है । इलोहिम - इलाही भी वरुण ही को कहते थे। इलाही