छोड़ देता है ? मैं तेरा इसी क्षण निरस्त्र वध करूंगा। " ____ मेघनाद ने क्रुद्ध होकर कहा - “ अरे , अधम मानव, निरस्त्र शत्रु पर आघात करना वीरकुल की मर्यादा नहीं। तूने चोर की भांति मेरे मन्दिर में प्रवेश किया है । ठहर, मैं तुझे चोर ही की भांति दण्ड दूंगा । ” उसने एक श्रृंगपात्र उठाकर लक्ष्मण के सिर पर दे मारा । सिर पर करारा आघात खाकर लक्ष्मण घूमकर भूमि पर गिर पड़े । अब मेघनाद उनकी तलवार लेने को झपटा । इसी समय भीमकाय शूल हाथ में लिए विभीषण ने उसका मार्ग रोक लिया । विभीषण को सम्मुख देख रावणि ने क्रोध और घृणामिश्रित स्वर में कहा - “ अहा, अब समझा कि रामानुज ने किस कौशल से शत्रुपुरी में प्रवेश किया । तात , आपको धिक्कार है! अरे ! महिदेव जगदीश्वर आपका सहोदर , महातेज कुम्भकर्ण आपका भाई और यह दास आपका भ्रातृपुत्र इन्द्र -विजयी । सो आपने अपने घर का द्वार चोर को दिखाया ? क्या कहूं , आप पितृतुल्य गुरुजन हैं । कृपा करके राह छोड़ दीजिए। मैं शस्त्रागार में जाकर शस्त्रपाणि हो , अभी इस चोर रामानुज को मृत्यु की गोद में सुलाकर लंका के कलंक को दूर करूंगा। " विभीषण ने कहा- “ तेरा अनुरोध वृथा है, मैं राम का अनुगत हूं। " ___ “ अहा , यह आपने क्या कहा ? हाय , आप! राम के दास ! अरे , कहां आप महाकुल के जन्मधारी और कहां अधम राम ! यह रामानुज कितना क्षुद्र है जो निरस्त्र योद्धा पर शस्त्राघात करता है! यह क्या महारथियों की प्रथा है ? हटिए, मुझे शस्त्र ले आने दीजिए। मैं देखूगा , इस काल के मुख में आए हतायु रामानुज को अब कौन मेरे हाथ से बचाता है ? हटो , द्वार छोड़ो! ” परन्तु विभीषण ने द्वार नहीं छोड़ा । उन्होंने कहा - “ रावण तो अपने कर्म -दोष ही से लंकासहित रक्षकुल को डुबो रहा है। मैंने तो धर्माश्रय लिया है! ” मेघनाद ने गरजकर कहा - “ तुमने धर्माश्रय लिया है ? किस धर्म के मत से तुमने भ्रातृत्व और जातित्व को तिलांजलि दी है ? अरे, अरे! " इसी क्षण हठात् सौमित्रि ने सावधान हो दिव्य धनुष से बाण -वर्षा आरम्भ कर दी । मेघनाद के शरीर में बाण छिद-छिदकर रक्त की धार बह चली । मेघनाद ने आहत पशु की भांति चीत्कार करते हुए कहा - “ अरे अधम चोर, ठहर , ठहर , रे ठहर ! ” उसने यज्ञपात्र, घंटा उठा - उठाकर लक्ष्मण परफेंकने आरम्भ किए। लक्ष्मण ने दिव्य धनुष से चौमुखी बाण-वर्षा कर मेघनाद के अंग - प्रत्यंग को छलनी कर दिया । वह बचने को इधर - उधर दौड़ने और चिल्लाने लगा । लक्ष्मण की चतुर्मुख बाण-वर्षा से चमत्कृत होकर आर्तनाद करता हुआ मेघनाद बोला - " हाय - हाय , अब मैं ऐसे मरता हं जैसे राह चन्द्र को ग्रस लेता है अथवा जैसे सिंह व्याध के जाल में फंसकर ! " लक्ष्मण ने उसके दोनों पैरों को झटपट बींध डाला। रथीन्द्र भूमि पर गिरकर छटपटाने लगा। अब लक्ष्मण धनुष छोड़ खड्ग हाथ में ले उस पर पिल पड़े । उन्होंने बारम्बार निर्दय आघात करते हुए कहा - " मर रे अधम, मर ! मर रे देवों के शत्रु मर ! पृथ्वी को अशान्त करने वाले , मर ! मर! मर! ” रथीन्द्र रावणि के अंग -प्रत्यंग कटकर छिन्न-भिन्न हो गए। वह रक्त से लथपथ छटपटाने और लम्बी - लम्बी सांसें लेने लगा । उसने टूटते स्वर में कहा - “ अरे नराधम पामर , मुझे मृत्यु का शोक नहीं । पर तुझ चोर के आघात से मेरी मृत्यु हुई , इसी की लज्जा है । अरे नराधम, रक्षेन्द्र जब सुनकर क्रोध करेंगे तो उनसे तेरी रक्षा कौन करेगा ? दानवों और मानवों में कौन ऐसा समर्थ है ? " वह मृत्यु -यातना से
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