पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४४

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10. वज्रपाणि दैत्येन्द्र दैत्यबाला के रमण से तृप्त और लातों के आघात से प्रहर्षित रावण लम्बी - लम्बी डगें भरता हुआ नगर की दक्षिण दिशा में स्थित समुद्र- तट की ओर बढ़ता चला गया । समुद्र- तट से कुछ हटकर छोटी - बड़ी चट्टानों की ओट में वन के एक दुर्गम प्रदेश में उसका शिविर था । शिविर तक आने में बहुत रात बीत गई। आकर उसने देखा आग पर समूचा भैंसा भूना गया है, और दैत्य -दानव अब भोजन की तैयारी कर केवल उसी की प्रतीक्षा में बैठे हैं । मद्य - भाण्ड भरे धरे हैं । बड़ी - बड़ी अग्निराशि यत्र - तत्र जल रही है। रावण के वहां पहुंचते ही एक वृद्ध दैत्य ने आगे बढ़कर उसका कन्धा थामकर कहा - " इतना विलम्ब करके तूने हमें चिन्ता में डाल दिया , पुत्र ! " “ चिन्ता काहे की , मातामह ? " “ पुत्र, अपना देश नहीं है? वन , वाट , वीथी अज्ञात हैं , और तू हमारे प्राणों से भी अधिक मूल्य का है। " तरुण ने हंसकर वृद्ध का हाथ पकड़ लिया । कहा - “ बहुत श्रम करना पड़ा , मातामह, भोजन दो । " __ “ पहले कण्ठ सिक्त कर। " वृद्ध दैत्य ने एक असुर को संकेत किया । असुर ने मद्य भाण्ड लाकर प्रस्तुत किया । समूचा भाण्ड एक ही सांस में पीकर एक बड़ा - सा छुरा ले तरुण भैंसे की ओर बढ़ा । उसने मांसखण्ड काटा । फिर तो सभी असुर भैंसे पर पिल पड़े । वे अन्धाधुन्ध मद्य पीने और मांस खाने लगे । वे हर्ष- आवेग से चीखने -चिल्लाने, छीना - झपटी करने और आपस में रेलमपेल करने लगे। देखते - ही - वह समूचा भैंसा और वे सब के सब मद्य- भाण्ड उनकी उदरदरी में समा गए । खा - पीकर निवृत्त होकर वृद्ध दैत्य तरुण के निकट खिसक आया । वह सुमाली था । उसने खींचकर तरुण को अंक में भरकर छाती से लगाकर कहा - “ पुत्र, बहुत दिन के हमारे मनोरथ अब पूरे होंगे । ये सब द्वीप - समूह हमने जय कर लिए। यह बाली द्वीप भी आज रात जय हुआ समझ! परन्तु अब तू सामने इस स्वर्ण-लंका को देख । मेरी इस लंका में अब तेरा भाई कुबेर रहता है । वह हमारा नहीं, देवों - आर्यों का बान्धव है। आर्यों और देवों ने उसे धनेश बनाकर अपना लोकपाल नियुक्त कर दिया है । वह हमारे ही धन से सम्पन्न है। हमारी ही लंका में सुप्रतिष्ठित है। यह मैं अब नहीं सह सकता । विष्णु का अब हमें भय रहा ही नहीं । अब यदि कुबेर धनपति राज़ी से मेरी लंका तेरे लिए छोड़ दे तो ठीक है, नहीं तो हम उसे शस्त्र से मार तुझे लंकाधीश्वर बनाएंगे। पुत्र , तू ही डूबते हुए दैत्य वंश का सहारा है। " तरुण रावण नाना की बात सुनकर चुप हो गया । वह गहरे सोच में पड़ गया । इस पर सुमाली ने कहा - “ अब क्या सोच रहे हो , पुत्र ? तुझे चिन्ता किस बात की है ! रावण ने कहा - “ मातामह, कुबेर मेरा बड़ा भाई है, कैसे मैं उससे ऐसा प्रस्ताव करूं