पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

16. सुम्बा द्वीप में दानवों के उस क्षुद्र द्वीप का नाम सुम्बा था । वह छोटा - सा द्वीप बाली द्वीप के दक्षिणांचल में थोड़ा पूर्व की ओर मुड़कर था । भारतीय महासागर में जो असंख्य अज्ञात छोटे - छोटे द्वीपसमूह हैं , उनमें से एक यह था । द्वीप प्राकृतिक सौन्दर्य से ओत - प्रोत था । सारे द्वीप की परिधि एक योजन से भी कम थी । द्वीप के बीचों -बीच एक लम्बी - चौड़ी झील थी , जिसमें चारों ओर से झरने का पानी आकर जमा होता था । झील के चारों ओर दानवों के पुर थे। द्वीप का आकार अंडे के समान था । द्वीप चुम्बक पत्थर का था , इससे जलयान और तरणियां बहुधा यहां नहीं आती थीं । जलमग्न चुम्बकीय चट्टानों से टकराकर उनके डूब जाने का भय था । परन्तु दानव यहां निर्भय आते - जाते थे। दानवों की यहां सम्पन्न बस्तियां थीं । उनके घर पक्के , राजमार्ग प्रशस्त और पुर में स्थान -स्थान पर हरे - भरे उपवन थे , जिनमें अनेक मौसमी फल और फूल लगे थे। द्वीप का जलवायु अत्यन्त स्वास्थ्यप्रद था । पुर , घर , हर्म्य, सौध , वन , बाग, उपवन , उद्यान , तड़ाग , राजमार्ग सभी कलापूर्ण थे। ऐसा प्रतीत होता था , दानव अत्यन्त कलाप्रेमी हैं सम्पन्न भी हैं । उनकी सम्पन्नता का तो यही प्रमाण यथेष्ट था कि दानवों तथा उनकी पत्नियों के अंगों पर बहुत से स्वर्ण- आभूषण थे। रत्नाभरण भी वे पहने थीं । दानव - कन्याएं दैत्यों के समान कृष्णवर्णा नहीं होती थीं । उनका रंग तपाए सोने के समान तथा उठाव आकर्षक होता था । दैत्यों की अपेक्षा वे सभ्य और सुसंस्कृत भी थे। दानव जैसे वीर थे, जैसे हंसमुख और कलाप्रेमी थे। संगीत - नृत्य उन्हें अत्यन्त प्रिय था । उनकी भाषा कर्णमधुर थी । और वे प्राकृत बोलते थे । इस द्वीप के निवासी अत्यन्त परिश्रमी और सहिष्ण थे। वे दोपहर की धूप और गर्मी की परवाह न करके अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे। बहुत - से दानव प्रभात की सुनहरी धूप में अपने खेतों , बगीचों और खलिहानों में काम कर रहे थे। नगर - हाट में पण्यक भी थे, शिल्पी भी थे। वे सभी अपने - अपने काम में व्यस्त थे। स्त्रियां भी पुरुषों ही के समान परिश्रमशीला थीं । ये दानव जैसे स्वस्थ और परिश्रमी थे , वैसे ही हंसमुख और मिलनसार भी थे। उच्च रक्त के चिह्न उनमें प्रकट थे। ___ सुन्दर प्रभात था । प्रभात के इन क्षणों में समुद्र तट की प्रकृति - शोभा देखते ही बनती थी । सर्वत्र एक माधुर्यपूर्ण आलोक छाया था । सुदूर क्षितिज पर फैले हुए फेनिल सागर की गम्भीर तंरगों पर प्रभातकालीन सूर्य की रक्तिम किरणें थिरक रही थीं । लाल पीली आभा से उद्भासित आकाश अनन्त की ओर एक धूमिल रेखा बनाता हुआ समुद्र से जा मिला था । इसके नीचे सफेद पक्षी जहां - तहां जलक्रीड़ा -रत थे। पछवा हवा कुछ वेग से बह रही थी , और उसके झोंकों से तटवर्ती वृक्ष झूमते हुए एक सीत्कार- सा कर रहे थे। प्रबल वात के थपेड़ों से आन्दोलित महासागर की ज्वार की रौद्र लहरें गम्भीर गर्जन तर्जन करती हुई अनवरत गति से तटवर्ती काली और लाल- लाल चट्टानों से टकरा रही थीं । सारा उपकूल श्वेत भागों से भरा था ।