19 . इन्द्र यदि आप ध्यान से पर्शिया के नक्शे के पश्चिम की ओर झुकते हए उत्तर में काश्यप सागर के निकटवर्ती भूखण्ड पर नजर डालेंगे, तो आप देखेंगे कि काश्यप सागर का सम्पूर्ण दक्षिणी तट काकेशस पर्वत - श्रेणियों की शृंखला से आच्छादित है। यहीं पर जार्जिया प्रदेश है और उसी के नीचे उपत्यकाओं में एक स्थान ‘ अजरबेजान है, जो आजकल सोवियत राज्य की सीमा में है । इसका प्राचीन नाम ‘ आर्यवीर्यान् था । प्रलय के बाद इस स्थान का नाम आर्यवीर्यान् इसलिए पड़ा कि प्रलय के बाद ही इस भूखण्ड पर वरुण के नेतृत्व में आदित्यों ने प्रलय में बचे हुए परिवारों को स्थापित किया था । यहीं पर अत्रि नदी है, जिसके तट पर प्रलय के बाद अत्रि ऋषि ने अपना उपनिवेश स्थापित किया था । अत्रि भृगुपुत्र शुक्र के पुत्र थे। शुक्र भी दैत्यों के याजक थे, आजकल , काकेशस पार्वत्य प्रान्त प्राचीन काल में देमाबन्द कहलाने लगा था , जो देवस्थान का बिगड़ा हुआ रूप था , और जिसके सम्बन्ध में इस परिच्छेद में चर्चा की जाएगी । जिस स्थान पर अत्रि का उपनिवेश था , उसका नाम अत्रिपत्तन था । आज वह स्थान ‘ एट्रोपेटन के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में जो नदी आट्रीक प्रसिद्ध है, वह नदी हमारे पुराणों में विख्यात अत्रि नदी थी । अत्रि की यह भूमि तपोवन या तपोभूमि कहाती थी । इसी स्थान पर आज भी वन नाम का प्राचीन नगर है । मार्के की बात है कि इस एट्रोपेटन प्रदेश का देमाबन्द पर्वत सारे संसार में एक ऐसा स्थान है जहां रात-दिन सूर्य अस्त नहीं होता । रात -दिन प्रकाश रहता है। इस तपोभूमि को आजकल तपुरिया प्रान्त कहते हैं , जो वास्तव में तपपुरी का बिगड़ा हुआ रूप है । ईरान के निवासी इस स्थान को पैराडाइज या स्वर्ग कहते हैं । इसके आस- पास का प्रदेश मीडिया प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध है। पुराणों में अत्रि का स्थान–‘ परेण हिमवन्तम् कहा है। इसका अर्थ अपवर्त है। पर्शियन इतिहास में एट्रोपेटन और अजरबेजान को आट्रीक नदी के तीर पर काश्यप सागर के निकट बताया गया है। यहीं पर बैकुण्ठ , बहिश्त और सत्यलोक भी था । पुराणों में इस भूमि को कामधराधरा कहा गया है । जिसके समर्थन में पर्शियन इतिहासकार इसे उपजाऊ फलों से लदी हुई बताते हैं । यहीं सोम पैदा होता था । यहीं कल्पतरु थे, जो यथेष्ट फल देते थे। यहां के निवासियों की जाति और गोत्र आज भी अत्रियस है । यहीं पर , अपवर्त में तपोभूमि के निकट काश्यप सागर - तट के किसी ग्राम में किसी कौशिक ग्रामपति के वीर्य से एक कन्या को गर्भ रह गया । उसने अपवाद के भय से छिपकर किसी गोशाला में चुपचाप पुत्र को प्रसव किया । बालक के जन्म के बाद उसके पिता ने न पुत्र को स्वीकार किया , न उस कन्या को । उसने बालक को मार डालने की चेष्टा की । आयु पाकर उस बालक ने पैर पकड़कर पिता को मार डाला और स्वयं उस ग्राम का पति बन गया । शीघ्र ही यह साहसी , पराक्रमी वहां के आदित्यों का नेता बन गया ।
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