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वरदान
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नही दीख पड़ता, क्या बात है? कोई उसके घर जाके देखे तो।' मुशी जगदम्बाप्रसाद अपनी योग्यता प्रकाशित करने का अच्छा अवसर देखकर बोल उठे―‘हजूर वह दफ़ा १३ न० अलिफ़ ऐक्ट (ञ) मे गिरफ्तार हो गया। रामदीन पाडे ने वारण्ट जारी करा दिया।’ हरीच्छा से रामदीन पाडे भी वहाॅ बैठे हुए थे। लाला ने उनकी ओर परम तिरस्कारपूर्ण दृष्टि से देखा और कहा―‘क्यों पाडेजी, इस दीन को बन्दी गृह मे बन्द करने से तुम्हारा घर भर जायगा? यही मनुष्यता और शिष्टता अब रह गयी है। तुम्हे तनिक भी दया न आयी कि आज होली के दिन उसे स्त्री और बच्चो से अलग किया। मै तो सत्य कहता हूॅ कि यदि मै राधा होता, तो बन्दीगृह से लोटकर मेरा प्रथम उद्योग यही होता कि जिसने मुझ यह दिन दिखाया है, उसे मै भी कुछ दिनो हल्दी पिलवा दूॅ। तुम्हे लाज नही आती कि इतने बड़े महाजन होकर तुमने बीस रुपये क लिये एक दीन मनुष्य को इस प्रकार कष्ट मे डाला। डूब मरना था ऐसे लोभ पर।' लालाजी को वस्तुत क्रोध आ गया था। रामदीन ऐसा लज्जित हुआ कि सब सिट्टी- पिट्टी भूल गयी। मुख से बात न निकली। चुपके से न्यायालय की ओर चला। सब के सब कृषक उसकी ओर क्रोध पूर्ण दृष्टि से देख रहे थे। यदि लालाजी का भय न होता तो पाडेजी की हड्डी-पसली वही चूर हो जाती।

इसके पश्चात् लोगो ने गाना आरम्भ किया। मद मे तो सब-के-सब माते ही थे, इस पर लालाजी के इस भ्रातृ-भाव के सम्मान से उनके मन और भी उत्साहित हो गये। खूब जी तोड़कर गाये। डफें तो इतने जोर से बजती थी कि अब फटीं और अब फटी। जगदम्बाप्रसाद ने दुहरा नशा चढाया था। कुछ तो उनके मन मे स्वत उमग उत्पन्न हुई, कुछ दूसरो ने उत्तेजना दी। आप मध्य सभा में खड़े होकर नाचने लगे, विश्वास मानो, नाचने लगे। मैने अचकन, टोपी, धोती और मूॅछोवाले पुरुप को नाचते न देखा था। आध घण्टे तक वे बन्दरो की भॉति उछलते-कूदते रहे। निदान मद ने उन्हे पृथ्वी पर लिटा दिया। तत्पश्चात् एक और