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दुःख दशा
 

विरजन खड़ी हो गयी और रोती हुई बोली―माता! जिसे नाययण ने कुचला, उसे आप क्या कुचलती है!

निदान प्रेमवती का चित्त वहाॅ से ऐसा उचाट हुआ कि एक मास के भीतर सब सामान औने पौने बेचकर मझगाँव चली गयी। वृजरानी को संग न लिया। उसका मुख देखने से उसे घृणा हो गयी थी। विरजन इस विस्तृत भवन मे अकेली रह गयी। माधवी के अतिरिक्त अब उसका कोई हितैषी न रहा। सुवामा को अपनी मुँह बोली बेटी की विपत्तियों का ऐसा ही शोक हुआ, जितना अपनी बेटी का होता। कई दिन तक रोती रही और कई दिन बराबर उसे समझाने के लिए आती रह। जब विरजन अकेली रह गयी तो सुवामा ने चाहा कि यह मेरे यहाॅ उठ आये ओर सुख से रहे। स्वय कई बार बुलाने गयी, पर विरजन किसी प्रकार जाने को राजी न हुई। वह सोचतो यी कि ससुर को संसार से सिधारे अभी तीन मास भी नहीं हुए, इतनी जल्दी यह घर सूना हो जायगा, तो लोग कहेंगे कि उन के मरते ही सास और बहू लड़ मरीं। यहाँ तक कि उसके इस हठ से सुवामा का मन मोटा हो गया।

मझगाॅव में प्रेमवती ने एक अन्धेर मचा रखी थी। असामियों को कटु वचन कहती। कारिन्दा के सिर पर जूती पटक दी। पटवारी को कोसा। राधा अहीर की गाय बलात्कार छीन ली। यहाँ तक कि गाँववाले घबरा गये। उन्होंने बाबू राधाचरण से शिकायत की। राधाचरण ने यह समाचार सुना तो विश्वास हो गया कि अवश्य इन दुर्घटनाओं ने अम्मा की बुद्धि भ्रष्ट कर दी है। इस समय किमी प्रकार इनका मन बहलाना चाहिए। सेवती को लिखा कि तुम माताजी के पास चली जाओ और उनके संग कुछ दिन रही। सेवती की गोद में उन दिनों एक चाँद सा बालक खेल रहा था और प्राणनाथ दो मास की छुट्टी लेकर दरभंगा से आये थे। राजा साहब के प्राइवेट सेक्रेटरी हो गये थे ऐसे अवसर पर सेवती कैसे आ सकती थी? तैयारियाँ करते-करते महीनों गुजर गये। कभी