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वरदान
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परन्तु प्रेमवती की यह दशा बहुत दिनों तक स्थिर न रही। यह चेतनता मानों मृत्यु का सन्देशा थी। इसी चित्तोद्विग्नता ने उसे अब तक जीवन-कारावास में रखा था, अन्यथा प्रेमवती जैसी कोमल―हृदया स्त्री आपत्तियों के ऐसे झोंके कदापि न सह सकती।

सेवती ने चारों ओर तार दिलवाये कि आकर माताजी को देख जाश्री पर कहीं से कोई न आया। प्राणनाथ को छुट्टी न मिली, विरजन बीमार थी, रहे राधाचरण। वह नैनीताल वायु परिवर्तन करने गये हुए थे। प्रेमवती को पुत्र ही देखने को लालसा थी, पर जब उनका पत्र आ गया कि इस समय मै नहीं आ सकता, तो उसने एक लम्बी साँस लेकर आँखें मूँद ली, और वह ऐसी सोयी कि फिर उठना नसीब न हुआ।

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[ २० ]

मन का प्रावल्य

मानव हृदय एक रहस्यमय वस्तु है। कभी तो वह लाखों की ओर आँख उठाकर नहीं देखता और कभी कौड़ियों पर फिसल पड़ता है। कभी सकड़ों निर्दोषों की हत्या पर 'आह' तक नहीं करता और कमी एक बच्चे को देखकर रो देता है। प्रतापचन्द्र और कमलाचरण में यद्यपि सहोदर भाइयों का सा प्रेम था, तथापि कमला की आकस्मिक मृत्यु का जो शोक होना चाहिए वह न हुआ। सुनकर वह चौक अवश्य पड़ा और थोड़ी देर के लिए उदास भी हुआ, पर वह शोक, जी किसी सच्चे मित्र की मृत्यु से होता है उसे न हुआ। निस्सन्देह वह विवाह के पूर्व ही से विरजन को अपनी समझता था तथापि इस विचार मे उसे पूर्ण सफलता कमी प्राप्त न हुई। समय-समय पर उसका विचार इस पवित्र सम्बन्ध की सीमा का उल्लघन कर जाता था। कमलाचरण से उसे स्वत कोई प्रेम न था। उसका जो कुछ आदर, मान और प्रेम वह करता था, कुछ तो इस विचार