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पृष्ठ:वरदान.djvu/१६०

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काशी में आगमन
 

रुक्मिणी―उन्होंने तो देवीनी से यही वरदान मांगा था।

चन्द्रकुँवर―तो क्या नाति की सेवा गृहस्थ रहकर नहीं हो सकती?

रुक्मिणी―जाति ही की क्या, कोई भी सेवा गृहस्थ रहकर नहीं हो सकती। गृहस्थ केवल अपने बाल-बच्चों की सेवा कर सकता है।

चन्द्रकुॅवर―करनेवाले सब कुछ कर सकते हैं न करनेवालों के लिए सौ बहाने हैं।

एक मास और बीता। विरजन की नयी कविता स्वागत का सन्देशा लेकर बालाजी के पास पहुॅची; परन्तु यह न प्रकट हुआ कि उन्होंने निमन्त्रण स्वीकार किया या नहीं। काशीवासी प्रतीक्षा करते-करते थक गये। वालाजी प्रति दिन दक्षिण की ओर बढते चले जाते थे। निदान लोग निराश हो गये और सबसे अधिक निराशा विरजन को हुई।

एक दिन जब किसी को ध्यान भी न था कि बालाजी काशी आयेंगे, प्राणनाथ ने आकर कहा―बहिन! लो, प्रसन्न हो जाओ, आज बालाजी आ रहे हैं।

विरजन कुछ लिख रही थी, हाथो से लेखनी छूट पड़ी। माधवी उठकर द्वार की ओर लपकी। प्राणनाथ ने हँसकर कहा―क्या अभी आ थोड़े ही गये हैं कि इतनी उद्विग्र हुई जाती हो?

माधवी―कब आयेंगे? इधर ही से होकर जायेंगे न?

प्राणनाथ―यह तो नहीं ज्ञात है कि किधर से आयेंगे। उन्हें आडम्बर और धूमधाम से बड़ी घृणा है। इसी लिए पहिले से आने की तिथि नहीं नियत की। राजा साहब के पास आज प्रात काल एक मनुष्य ने आकर सूचना दी कि बालाजी आ रहे हैं और कहा है कि मेरी अगवानी के लिए धूमधाम न हो; किन्तु यहाँ के लोग कब मानते हैं? अगवानी होगी, समारोह के साथ सवारी निकलेगी और ऐसी कि इस नगर के इतिहास में स्मरणीय हो। चारों ओर आदमी छुटे हुए हैं। ज्योही उन्हें आते देखेंगे, वे लोग प्रत्येक महल्ले में टेलिफोन द्वारा सूचना दे देंगे।