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वरदान
१८
 

जल उठा। किसी को ध्यान भी न हुआ कि प्रताप कहाँ है। थोड़ी देर तक तो वह द्वार पर खड़ा रोता रहा,फिर झटपट आँखें पोंछकर डाक्टर किचलू के घर की ओर लपकता हुआ चला। डाक्टर साहब मुन्शी शालि-ग्राम के मित्रों में से थे। और जब कभी काम पड़ता,तो वे ही बुलाये बाते थे। प्रताप को केवल इतना विदित था कि वे वरना नदी के किनारे लाल बंगले में रहते हैं। उसे अब तक अपने महल्ले से बाहर निकलने का कमी अवसर न पड़ा था। परन्तु उस समय मातृभक्ति के वेग से उद्विग्न होने के कारण उसे इन रुकावटों का कुछ भी ध्यान न हुअा। घर से निकल-कर बाज़ार में श्राया और एक इक्कोवान से बोला-'लाल बॅगले चलोंगे?'लाल बंगला प्रसिद्ध स्थान था। इक्कावान तैयार हो गया। पाठ बनते-वनते डाक्टर साहब की फिटन सुवामा के द्वार पर श्रा पहुँची। यहां इस समय चारों ओर उसकी खोज हो रही थी कि अचानक वह सवेग पैर बढ़ाता हुआ भीतर गया और वोला--पर्दा करो। डाक्टर साहब अाते हैं।

सुवामा और सुशीला दोनों चौंक पड़ी। समझ गयीं,यह डॉक्टर साहब को बुलाने गया था। सुवामा ने प्रेमाधिक्य से उसे गोदी में बैठा लिया और नेत्रों में आंसू भरकर पूछा-क्या अकेले चले गये थे १ तुम्हें रास्ता कैसे मालूम हुआ? डर नहीं लगा १ हमको बतलाया भी नहीं,यों ही चले गये १ तुम खो बाते तो मैं क्या करती १ ऐसा लाल कहां पाती १ यह कहकर उसने वेटे को बार-बार चूम लिया। प्रताप इतना प्रसन्न था,मानो परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है। योड़ी देर में पर्दा हुआ और डॉक्टर साहब श्राये। उन्होंने सुवामा की नाड़ी देखी और सान्त्वना दो। वे प्रताप को गोद में बैठाकर बातें करते रहे। श्रीपघ साथ लेते आये थे। उसे पिलाने की सम्मति देकर नौ बजे बँगले को लौट गये। परन्तु जीणंज्वर था,अतएव पूरे मास-भर सुवामा को कड़वी-कड़वी औपधियाँ खानी पड़ी।डाक्टर साहब दोनों वक्त श्राते और ऐसी कृपा और ध्यान रखते,मानो सुवामा उनकी वहिन है। एक बार सुवामा ने डरते-डरते फीस के रुपये