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पृष्ठ:वरदान.djvu/४२

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सखियां
 

यही बातें हो रही थीं कि माधवी चिल्लाती हुई आयी-'भैया आये,भैया आये। उनके संग नीना भी आये हैं,ओहो!ओहो!'

रानी-राधाचरण आये क्या?

सेवती-हाँ! चलूँ,तनिक भाभी को सन्देश,दे पाउँ! क्यों रे! कहाँ बैठे हैं?

माधवी--उसी बड़े कमरे में। जीजा पगड़ी बाँधे हैं। भैया कोट पहिने हैं,मुझे जीना ने रुपया दिया। यह कहकर उसने मुट्ठी खोलकर दिखायी।

रानी-सित्तो! अब मुंह मीठा करायो।

सेवती-क्या मैंने कोई मनौती की थी?.

यह कहती हुई सेवती चन्द्रा के कमरे में जाकर बोली-लो भाभी-!तुम्हारा सगुन ठीक हुना।

चन्द्रा-क्या आ गये? तनिक बाकर भीतर बुला लो।

सेवती-हाँ,मर्दाने में चली जाऊँ,तुम्हारे बहनोईजी भी तो पधारे हैं।

चन्द्रा-बाहर बैठे क्या कर रहे हैं? किसी को भेजकर बुला.लेती,नहीं तो दूसरों से बातें करने लगेंगे।

अचानक खड़ाऊँ का शब्द सुनायी दिया और राधाचरण आते दिखायी दिये। आयु चौबीस-पचीस बरस से अधिक न थी। बड़े ही हँस-मुख,गौर वर्ण,अग्रेजी काट के बाल,फ्रेंच काट की दाढ़ी,खड़ी मूंछे,लवंडर की लपटें पा रही थीं। एक पतला रेशमी कुर्ता पहने हुए थे। आकर पलॅग पर बैठ गये और सेवती से बोले क्यों सित्तो! एक सप्ताह से चिठ्ठी नहीं भेजी

सेवती-मैंने सोचा,अव तो आ ही रहे हो,क्यों चिट्ठी भेजूं ? यह कहकर वहां से हठ गयी।

चन्द्रा ने चूंघट उठाकर कहा-वहाँ नाकर भूल नाते हो?

राधाचरण-(हृदय से लगाकर) तभी तो सैकड़ों कोस से चला था रहा हूँ।