गया और दूसरे दोनों पुरुषोंने राजा की नौकरी करली,
बाण कविने पुष्पभूति का इतना ही इतिहास दिया है।
इस के पश्चात् इस वंश में अनेक राजा हुए परन्तु
उनका इतिहास अभी तक प्राप्त
प्रभाकर वर्धन
नहीं हुवा । इ. स. ६०५ में
जब प्रभाकर वर्धन गद्दी पर बैठा तब से फिर बाण ने
इस वंशका इतिहास दिया है । प्रभाकर वर्धन को
" प्रतापशील " भी कहा जाता था । पंजाब के गान्धार
( पेशावर ) और साकल ( स्यालकोट ) में राज्य करने
वाले हूण लोगों को उसने हराया था । सिन्ध के राजा
तथा राजपूताना के गुर्जर राजा को भी उसने पराजित
किया । मालवा तथा लाट ( भरुच ) के राजाओं पर
भी उसने विजय प्राप्त की
उसकी पत्नी का नाम यशोवति ( यशोमति )
था । एक समय जब राजा तथा रानी सो रहे थे तब
* हूणहरिण केसरी सिन्धुराजज्वरो गुर्जरप्रजागरो
गान्धारधिपगन्धद्विपकूटपाकली लाटपाटलपाटचरो मालव
लक्ष्मीलता परशुः प्रतापीलः ( हर्ष चरित)