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श्री हर्ष


था[१] उसका राज्य दक्षिण में विन्ध्या पर्वत से परे अशीरगढ़ तक, तथा पूर्व में लौहित्य ( ब्रह्मपुत्र) तक विस्तार पा चुका था।

अवन्ति वर्मा नामक मौखीर राजा के कई शिलालेख प्राप्त हुए हैं उन पर यहां विचार करना आवश्यक है। इन में यज्ञवर्मा, शार्दूल वर्मा और अनन्त वर्मा यह तीन ही नाम दीखते हैं। यह राजा अपने आप को मौखरिप्रसिद्ध किया करते थे, इससे प्रकट हुआ कि उनका वंश इस मुख्य वंश का शाखारूप होगा। इन के एक शिला लेख में " श्री शार्दूल इति प्रतिष्ठित यशः सामन्त चूड़ा मणिः ऐसा वाक्य है । इस लेख पर से ऐसा कहा जा सकता है कि वह सामन्त नाम से प्रसिद्ध थे। शर्ववर्मा और ईशानवर्मा तो महाराजाधिराज कहलाते थे। यह शाखा वंश गया में स्थापित हुआ होगा कारण कि वहां से यह शिला लेख प्राप्त हुए हैं।


  1. अफसद के शिलालेख मे “ यो माखरेः समितिपद्धत- हूणैसन्यावग्लद्धटा विघटयन्नुव रणानाम्॥ इत्यादि लिखा है इस पर से यह प्रकट होता है कि मारि और हूण लोगों में आपस में अनबन होगी।