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श्री हर्ष


का अन्त लाने का तथा अपनी भाग्यहीना बहिन राज्यश्री के उद्धार करने का निश्चय किया। केवल बंगाल को ही नहीं किन्तु समस्त भारतवर्ष के जीतने निमित्त हाथी घोड़े इत्यादियों का एक महासैन्य तैय्यार किया गया। ऐसा करने का यह कारण था कि हर्ष समझता था कि उसे अकेला तथा निस्सहाय समझ समस्त राजागण उसका सामना करने को तत्पर हो जायेगें। इस प्रकार दिग्विजय करने का निश्चय स्थिर हुआ। हाथियों की सेना के मुख्य महावत स्कन्दगुप्त को सब ठीकठाक करने का आदेश दिया गया। स्कन्दगुप्त ने दिग्विजय करने के विचार को अयुक्त बतलाया और अपने कथन की पुष्टि में नम्रता पूर्वक अनेक प्राचीन दृष्टान्त दिये, परन्तु हर्ष के ध्यान में एक बात भी नहीं समाई और उसने सब तैयारी करने का आदेश दिया जिस पूर्ण करने के निमित्त वह चल पड़ा। इसी समय हर्ष को अनेक शुभ शकुन हुए जिससे उसे अपनी दिग्विजय का पूर्ण भरोसा होयगा।