विक्रम जयसिंह की शत्रुता का विचार करके युद्ध रोकने का यत्न कर रहा था, कहाँ बीच में बिल्हण ने शरद लाकर खड़ी कर दी और उसी का आप वर्णन करने लगे। ऐसे अवसर में इस प्रकार का वर्णन अनुचित जान पड़ता है।
जयसिंह के साथ जब विक्रम युद्ध करने गया तब अपने साथ अपना सारा अन्तःपुर भी ले गया था। प्राचीन समय में शायद राजा लोग अपने रनिवास समेत युद्ध-यात्रा को निकलते थे। शायद वे इसलिए ऐसा करते थे कि दैवात् यदि वे परास्त हो जाये तो रनिवास को अपने साथ रख कर उसकी वे रक्षा कर सके, क्योंकि राजधानी में छोड जाने से भय था कि स्त्रियों कहीं शत्रुओं के हाथ न पड़े। मुसल्मान बादशाह भी अकसर ऐसा करते थे। विक्रम अपने साथ अपना निवास ही नहीं ले गया, किन्तु वेश्यायें भी। मृगया-विहार के समय, बिल्हण ने लिखा है कि, वेश्यायें घोड़े पर सवार होकर राजा के साथ मृगया में भी गई थों। देखिए:-
बाराङ्गनास्तस्य तुरङ्गमेषु
भ्रकार्मुकार ढकटाक्षबाणा:।
विरेजिरे दिग्विजयोद्यतस्य
सेना इवानङ्गनराधिपस्य।
सर्ग १६, पद्य ३० ।