है। उसमें प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने राजा हर्षवर्धन का चरित गद्य में लिखा है। उसके अनन्तर बहुत वर्षों तक और किसी दूसरे चरित का पता नहीं लगा। कोई ३० वर्ष हुए डाक्टर बूलर और डाक्टर जकोबी राजपूताना में प्राचीन संस्कृत पुस्तकों की खोज करने गये। वहाँ जैसलमेर के क़िले में ओसवाल चैनों के बृहज्-ज्ञानकोश नामक पुस्तकालय में ताड़ के पत्तों पर लिखी हुई विक्रमाङ्कदेवचरित की एक पुस्तक उन्हें मिली। जीवनचरितों में हर्षचरित के अनन्तर यह दूसरी पुस्तक है। इसके कर्नाटक प्रान्त के प्राचीन कल्याण नगर के राजा विक्रमाङ्कदेव का पद्यात्मक चरित है। विक्रमाङ्कदेव ही की सभा के कवि बिल्हण ने इसकी रचना की है। बिल्हण काश्मीरी थे। वे ग्यारहवीं शताब्दी में हुए हैं। विक्रमाङ्कदेवचरित की पुस्तक, जो जैसलमेर में पूर्वोक्त डाक्टरों को मिली, १२८६ ईसवी की लिखी हुई है, जिससे यह सिद्ध होता है, कि बिल्हण के केवल दोही सौ वर्ष पीछे वह लिखी गई थी। जबसे विक्रमाङ्कदेवचरित का पता लगा तबसे आज तक कुमारपालचरित, गौड़वध, हम्मीरवध और नवसाहसाङ्कचरित आदि और कई
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