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विचित्र प्रबन्ध।

के लिए उसमें बाधा है। अतएव अँगरेज़-समाज यद्यपि बाहर से खुला हुआ है तथापि केवल आँखों से शोभा देखने के सिवा हम लोग उससे और कुछ लाभ नहीं उठा सकते। हम लोगों को वहाँ से भूखे ही लौटना पड़ता है। सब जातियों का भोजन केवल साहित्य-क्षेत्र में हो सकता है। जिनकी लम्बी चोंच है उनको भी वहाँ से निराश नहीं होना पड़ता और जिनकी चञ्चल जीभ है वे भी तृप्त होते हैं।

यह कारण किसी को अच्छा लगे या न लगे, कोई इस कारण पर विश्वास करे या न करे, पर यह बिल्कुल सच है कि यहाँ के मनुष्यों के साथ "हाउ डू यू डू" कहने से, मुँह फैला कर ताकने से, मार्ग में और नदी के तीर पर घूमने से, थियेटर देखने से, दूकानें देखने से, कल-कारखाने आदि के निरीक्षण से,–अधिक क्या कहा जाय, यहाँ की स्त्रियाँ का सुन्दर मुँह देखने से भी,― मुझको श्रान्ति मालूम पड़ती है, शान्ति नहीं।

अतएव मैंने घर लौट जाने के लिए अपना विचार पक्का कर लिया है।

७ अक्तूबर। टेम्स नामक जहाज़ में मैंने अपने लिए एक केबिन ठीक कर लिया है। जहाज़ यहाँ से परसों चलेगा।

९ अक्तूबर। मैँ यथासमय जहाज़ पर उपस्थित हुआ। अब की बार मैं अकेला ही हूँ। मेरे साथी अभी विलायत ही मेँ रहेंगे। मैंने अपने केबिन में जाकर देखा कि उममें चार मनुष्यों के रहने का स्थान है और एक किसी दूसरे सज्जन का सामान एक कोने में रक्खा हुआ है। उस सज्जन के बक्स-ट्रकों पर उसके नाम के