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विदेशी विद्वान्

देशान्तर में फैल गया था तथापि धन-सम्बन्धी उसकी दशा अच्छी नहीं थी। इसलिए १६९६ ईसवी में सरकार ने उसे टकसाल का अधिकारी बनाया। कुछ दिनो में वहाँ उसका वेतन १५००) मासिक हो गया। इस पद पर वह अन्त तक बना रहा और अपना काम बड़ी योग्यता से उसने किया। १७०५ ईसवी में उसे “सर” की पदवी मिली। तब से वह सर आइज़क न्यूटन कहलाया जाने लगा।

गैलालियो की बनाई हुई दूरबीन में कई दोष थे। इस- लिए न्यूटन ने एक नई दूरबीन बनाकर गैलीलियो की दूरबीन से देखने में जो बाधायें आती थीं उनको दूर कर दिया। हमारे यहाँ के प्राचीन ज्योतिषी तो यह जानते थे कि पृथ्वी में आकर्षण-शक्ति है, अर्थात् जड़ पदार्थों को वह अपनी ओर खींच लेती है; परन्तु, न्यूटन के समय तक, योरप में इस बात को कोई न जानता था। एक बार न्युटन ने अपने बाग़ में एक सेव को पेड़ से गिरकर पृथ्वी की ओर आते देखा। उसी समय से वह उसके गिरने का कारण सोचने लगा और अन्त में गुरुत्वा- कर्पण के नियम का पता उसने लगाया। इस नियम के जानने से बड़ा लाभ हुआ; क्योंकि इसी के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी तथा और-और ग्रह अपनी-अपनी कक्षाओं पर घूमते हैं।

१७२६ ईसवी में, ८४ वर्ष का होकर, न्यूटन परलोकवासी हुआ। उसने अपनी सारी अवस्था गणित-विद्या की किताबें लिखने और विज्ञान-सम्बन्धी नई-नई बातें जानने में बिताई।