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अलबरूनी

बौद्ध धर्म का प्रचार था। युवावस्था में अलबरूनी खीवा-नरेश के मन्त्री हो गये। इस दशा में उन्होने अपने देश को स्वाधीन बना रखने के लिए बड़ी चेष्टा की। परन्तु १०१७ ईसवी में ग़ज़नी के दिग्विजयी सुलतान महमूद ने खीवा की स्वाधीनता छीन ली और राज्य-परिवार के साथ अलबरूनी को भी कैद करके गज़नी भेज दिया। वहाँ राजपरिवार की बड़ी दुर्दशा हुई। परन्तु अलबरूनी के पाण्डित्य का ख़याल करके महमूद ने उन पर कृपा की और उन्हे मुलतान भेज दिया।

मुलतान में अलबरूनी कोई तेरह वर्ष रहे। यह समय उन्होंने संस्कृत सीखने और ज्ञानालोचना करने मे बिताया । इसके बाद जब सुलतान महमूद की मृत्यु हुई तब उन्होंने "इंडिका" की रचना की । इंडिका किसी अन्य विशेष का अनुवाद नहीं; किन्तु मूल ग्रन्थ है। यह बडी दुरूह अरबी भाषा में लिखा गया है । साधारण अरबी जाननेवाला इसे नही समझ सकता। परन्तु पाश्चात्य पण्डितों की कृपा से अव उसका अनुवाद अनेक योरपियन भाषाओं में हो गया है।

भारतीय साहित्य, दर्शन, गणित, ज्योतिष और धर्मशास्त्र आदि का अध्ययन तथा लोकाचार-पर्यवेक्षण करके अलबरूनी ने भारतीय शिक्षा, दीक्षा, सभ्यता और सदाचार के सम्बन्ध मे जो तथ्य संग्रह किया था उसी को वह इंडिका में लिख गया है। इंडिका के सिवा अलबरूनी ने ऐसे और भी अन्य रचे हैं, जिनमें उसने भारतीय गणित और ज्योतिष की आलोचना की है।