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अध्यापक एडवर्ड हेनरी पामर


तक, जब तक वे विलायत मे रहे, उन्होंने पामर को अपने ही पास रक्खा और उनकी हर प्रकार से सहायता की। विलायत- प्रवासी अन्य कितने ही मुसलमान विद्वानों ने भी पामर की विलक्षण बुद्धि पर मुग्ध होकर उनकी बहुत कुछ सहायता की। पामर भी दिन और रात, अठारह-अठारह घण्टे, अरबी, फारसी और उर्दू पढ़ा-लिखा करते । रात बीत जाती और प्रातःकाल का प्रकाश सर्वत्र फैल जाता; परन्तु वे अपनी पुस्तक न बन्द करते !

१८६३ मे पामर केम्ब्रिज के सेट जान्स कालेज में भरती हुए। वहाँ की अन्तिम परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद, १८६७ में, वे अपनी फारसी और उर्दू की योग्यता के कारण, वहाँ के 'फेलो' चुन लिये गये । 'फेलो' नियत होने से उनकी आम- दनी कुछ बढ़ गई और उनकी अर्थ-कृच्छ्ता जाती रही।

१८७० मे,सन्आ (अरब) प्रदेश की नाप-जोख के लिए कुछ लोगों को भेजने की आवश्यकता गवर्नमेंट ने समझी। उस समय एक ऐसे आदमी की भी आवश्यकता हुई जो उस देश की भाषा, अरबी, बहुत अच्छी तरह जानता हो और वहाँ की बातों, नामों, दन्तकथाओं और वीजकों को अच्छी तरह पढ़ और समझ सकता हो। यह काम पामर को मिला। इसे उन्होंने बहुत अच्छी तरह निबाहा । सन्आ प्रदेश से लौटने पर, वहाँ की छानबीन पर, उन्होंने दो उपयोगी पुस्तके प्रकाशित की।

१८७१ में पामर अरबी के अध्यापक हो गये। उसी वर्ष उन्होंने अपना विवाह भी किया, परन्तु वे विवाह से सुखी