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अध्यापक एडवर्ड हेनरी पामर


अच्छी तरह जानते थे कि इस काम के लिए कार्य्य-दक्षता के अतिरिक्त अरबी की बड़ी भारी योग्यता की भी आवश्यकता है और सिवा उनके और किसी से यह काम न हो सकेगा। यह सोचकर वे ईजिप्ट गये। उस देश की और उसके आसपास के प्रदेशों की असभ्य जातियों और उनके सरदारों से मिलकर इस बात की वे चेष्टा करते रहे कि वे अरबी पाशा से न मिलें। पामर ने इस काम मे बड़ा साहस प्रकट किया। काफ़िरों के ख़ून की प्यासी असभ्य जातियों को रक्तपात करने से मना करना, या उन्हे रुपये के बल से शत्रु के साथ मिल जाने से रोकने की चेष्टा करना, कम साहस का काम न था। पर इस काम में पामर को बहुत कुछ सफलता हुई। यात्रा समाप्त करके वे स्वेज़ पहुँच गये; परन्तु वे वहाँ अधिक दिन न ठहर सके। उन्हे कुछ आदमियो के साथ इन असभ्य जातियों के प्रदेश में पहले से भी गुरुतर कार्य्य करने के लिए फिर जाना पड़ा। इसी यात्रा मे, जब वे अपने साथियों सहित ऊँटों पर सवार एक जङ्गल से होकर जा रहे थे, बहुत से अरबी ने उनके ऊपर आक्रमण किया और उन्हे और उनके साथियो को मार डाला। अपने देश की सेवा करता हुआ यह विद्वान् संसार से, इस प्रकार, निर्दयता-पूर्वक, छीन लिया गया।

लेख यद्यपि बढ़ जायगा तथापि, यहाँ पर, पामर साहब के लिखे हुए उर्दू और फ़ारसी के गद्य-पद्यात्मक लेखों के कुछ नमूने देने का लोभ हम संवरण नहीं कर सकते।