पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१२३

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विद्यापति । ११६. दूती । त्रिवलि तरङ्गिन पुर दुगम जानि मनमथे पत्र पठाउ । जौवन दलपति समर तोहर रतिपति दूत बढाउ ॥२॥ माधव वे साजिय दहु वाला । तसु सैसवे तेहे जे सन्तापलि से सबि अउति पाला ॥४॥ | कुन्तल चक्क अंकुस तिलक कए चन्दन कवच अभिरामा । नयन कटाख बान गुन दए साजि रहलि अछ बामा ।।६।। सुन्दरि साजि खेत चलि अाइलि विद्यापति कवि भाने । राजा सिवसिंह रूपनरायन लखिमा देवि रमाने ॥८॥ अभिसार । ठूती । | २३४ |वार विलासिनि आनवि कहा । तोहि कान्ह बरु जासि ताहा ॥ २ ॥ प्रथम नेह अति भिति राही । कते जतने कते मेराउवि ताही ॥ ४ ॥