पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२००

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१८४ विद्यापति । ए धनि सुन्दरि करे धरि तोर । हठ न करह महत राख मोर ॥ ६ ॥ पुनु पुन कत जे बुझायब बार बार । मदन बेदन हम सहइ न पार ॥ ८॥ भनइ विद्यापति तुहुँ सब जान । आशा भङ्ग दुख मरन समान ॥१०॥ माधव । उपमय आनन नीरज पङ्कज ससधर दिवस मलीने । भैहि अनूपम अधर सोहाउन नव पल्लव रुचि जीने ॥ २ ॥ सुन पेअसि की मोर परल गरुअ अपराधे। बह मलयानिल जार कलेवर न कर मनोरथ बाधे ॥ ४ ॥ माधव । साकर सुध दुधे परिपूरल सानल अमिञक सारे । सेहे वदन तोर अइसन करम मोर खारे पए बरिसए धारे ॥२॥ साजनि पिशुन वचन देहे काने । देहे विभिन विधाता आइति तोरा मोरा एके पराने ॥४॥ कोपहु सञो जदि समदि पठावह वचन न वोलह मन्दा ।। तोर वदन सन तेरे बदन पए खार न चारसय चन्दा ॥६॥ चौदिस लोचन चमकि चलावसि न मानसि काहुक शङ्का । तोर मुह सञो किछु भेद कराग्रोव देल चान्द कलङ्का ॥८॥