पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२२८

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३१२ sapere many ve srov www विद्यापति । सखी ।, ४१५ मानिनि हम कहिअ तुअ लागि । नाह निकटे पाइ जे जन वञ्चय तकर वड़हि अभागि ।।२।। दिनकर बन्धु कमल सब जानय जल तहि जिवन होइ ।। पङ्क विहिन तनु भानु सुखायत जलहि पटात सोइ ॥३॥ नाह समीपे सुखद जत वैभव अनुकुल होयत जोइ । तकर विरहे सकल सुख सम्पद खने दगधय सोइ ॥६॥ तुहु धनि गुनमति बुझि करह रिति परिजन ऐसन भासे । सुनइते राहि हृदय भेल गदगद अनुमति कयल परकास ॥८॥ -:-- दूती । जानतहु आन ॥ ४ ॥ ४१६ अवयव सबहिं नयन पए भास । अहनिसि झाखए पाव पास ॥ लाजे ने कहए हृदय अनुमान । पेम अधिक लघु जनितहु नि । साजन कि कहब तोर गेयान । पानी पाए सिकर भेल काह्न ॥ बाहर होइ आनहि काहंश समाद । होएतो हे समुखि पेम परमाद ॥ जज्ञो तह्निके जीवने तोह काज । गुरुजन परिजन परिहर " दण्ड दिवस दिवसहि हो भास । मास पाव गए वेरसक आ तोहर जुड़ाई तोहरे मान । गेल वुझाय के आने पर रजन परिहर लाज ॥१०॥ ९ वरसक पास ॥१२॥ यि के आन परान ॥१४॥