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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२८८

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२७०
विद्यापति ।

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| २७० विद्यापति ।। धरि परिवादिनी श्याम सुमिलने शुभ अनुकूल पयाने । पहिलहि वाम चरण तुल मोहन स्त्रीयागति लच्छन भाने ॥१०॥ राधा । ५३७ सजन की कहब कौतुक ओर ।। अलखिते हाथ हाथ मोर सरवस मान रतन गेओ चौर ॥१२॥ ए नव यौवनी नवीन विदेशिनी आओ फुकाइ राधा ॥१४॥ सुनइते श्याम हरखि चिते आओल उठि धनी आदर केन । वाहु पकडि निज आसने वैसायल कत कत हर्षित भेल ॥१६॥ तहि जाओत वीणा सुमाधुरी फि देयले मणिभाल । ऐसे वजाओत हमारि यन्त्रिया मोहन यन्त्र रसाल ॥१८॥ सुर अपसरी किये नागकुमारी तुहु सरूप कहब तुहु मोय । आजुक दिवस सफल करि मानली दुल्लभ दरशन तोय ॥२०॥ नामगाम कह कूल अवलम्वन ब्रजे आगमन किये काजा ।। सुखमयी नाम मथुरापुर यदुकुल गुणीजने पीड़ई राजा ॥२२॥ धनी कहे तुया गुणे रािझ प्रसन्न भेल मागह मानस जोय । मनोरथ कर्म याचलि यदि सुन्दरि मान रतन देह मोय ॥२४॥ हासि मुख मेडि पीठ देइ वैठल कानु कयल धनी कोर । दुटत मान वाढल कत कौतुक भूपति के करु शोर ॥२६॥