पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३१०

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विद्यापति ।

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| २८६ विद्यापति । ६ राधा । ५७५ चुम्बने लुबुध मुख अलखित भास । धरल चान्द चकोरक पास ॥ ३ ॥ प्रिय मुख झॉपल कुन्तल भार । चान्द अगोरल धन अन्धियार ॥ ४ ॥ की कहब है सखि रजनिक काज । कामहि कामे लजायल लाज ॥ ६ ॥ सहजहि माधव नव नव प्रेम । हाथिक दण्ड जड़ाओल हेम ॥ ८॥ निविड़ आलिङ्गन विगलित सेद । श्याम अरु गौर रेख रहु भेद ॥१०॥ -~~-०६----- माधव । २७६ अपरुब रूपक धामा । तीनि भुवन जिनि विहि विहु रामा ॥ ३ ॥ शीलक शितल सोभावे । जेहन रहिय तेहन सोहावे ॥ ४ ॥ मधुर वचन मुख सीची । विस पसर जनि अमियक वीचि ॥ ६ ॥ हेरइते हरए पाने । परसन मने परिरम्भन दाने ॥६॥ कि कहब रतिरङ्ग रीती । निरवधि बढ़ल बाढ़ पिरीती ॥१०॥ विद्यापति कवि गावे । पने गुनमत गुनमति धनि पावे ॥१२॥ सखी। ५७७ दूरहि ऊरु रहल गहि ठाम । चरने पाओल थल कमल उपाम् ॥ ३॥ खेद् विन्दु परिपूरल देह । मोतिम फलि सौदामिन रेह ।। ४ । सङ्कत निकेत मुरारि निहारि । अपनि अधीनि रहाले नहि नारि ॥ ६ ॥