पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३०४ विद्यापति । । मधुर युवतीगण सङ्ग । मधुर मधुर रसरङ्ग ॥ ६ ॥ मधुर मादल असाल । मधुर मधुर करताल ॥८॥ मधुर नटन गति भङ्ग । मधुर नटनी । नटरंट्स ॥१०॥ मधुर मधुर रसगान । मधुर विद्यापति भान ।।१२।। सखा । ६ ०८ एल वसन्त सकल रसमण्डल कुसुम भेल सानन्दे । फुललि मल्ली भूखल भ्रमरा पीवि गेल मकरन्द ॥२॥ भाविनि आवे कि करह समधाने । नहि नहि कए परिजन परबोधह लखन देखिय आवे आने ॥४॥ नख पद केसु पयोधर पूजल परतख भए गेल लोते । सुमेरु शिखर चढ़ि ऊगल ससधर दह दिस भेल उजोते ॥६॥ , विनु कारने कुण्डल कैसे आकुले एह जुगति नहि ओछी ।। कुमकुमकेर चोरि भलि फाउंलि कॉध न भेलिए पोळी ॥८॥ भनई विद्यापति अरे वर जौवति एह परतख पॅचवाने । राजा सिवसिंह रूप नरायन लखिमा देवि रमाने ।।१०।। सखी । ६०६ अभिनव कोमल सुन्दर पात । सवारे वने जनि, परिहल रात ॥२॥ मलय पवन डोलय वह भांति } अपने कसुम उसे अपने माति ॥४॥