पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३२८

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विद्यापति । डम मग डम्फ डिमिकि डिमि मादल रुणु झन मञ्जीर बोल । किङ्किणी रणरणि वलया कनकनि निधुवने रास तुमुल उतरोल ॥४॥ · वीण रवाव मुरज स्वरमण्डल सा रि ग म प ध नि स बहुविध भाव । घेटिता घेटिता घेनि मृदङ्ग गरजनि चञ्चल स्वरमण्डल करु राव ॥६॥ श्रमभरे गलित लोलित कवरियुत मालति भाल विथोरल मोति । समय वसन्त रास रस वर्णने विद्यापति मति क्षोभित होति ॥८॥ कवि । ६ १२ ऋतुपति राति रसिक वरराज । रसमय रास रभस रसमाझ ॥ २ ॥ 'रसवति रमणीरतन धनि राहि । रास रसिक सह रस अवगाह ॥ ४ ॥ रद्भिनिगण सब रङ्गहि नटइ । रणरणि कङ्कन किङ्किनि रटई ॥ ६ ॥ रहि रहि रास रचय रसवन्त । रतिरत रागिनी रमन वसन्त ॥८॥ रटति रवाब महतिक पिनाश । राधारमण करु मुरलि विलास ॥१०॥ रसमय विद्यापति कवि भान । रूपनारायण भूपति जान ।।१४ कवि । मलय पवन वह । वसन्त विजय कह ॥ २ ॥ भमर करइ रोल । परिमल नहि ओल ॥ ४ ॥ ऋतुपति रङ्ग देला। हृदय रभस भेला ॥ ६ ॥ , । अनङ्ग मङ्गल मेलि। कामिनि करथु केलि ॥ ८ ॥