पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३४८

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विद्यापति । ।२४ 12:12, 18 February 2019 (UTC)12:12, 18 February 2019 (UTC)नीलम (talk) नीलम (talk)•~ ~ ~ ~~ wwwww ~~ राधा । कमल सुखायले भमर नइ आव । पथिक पियासल पानि भ पाव ॥ २ ॥ | दिन दिन सरोवर होइ अगारि । अवहु नइ वरिपइ मही भर वारि ॥ ४ ॥ जीद तोहें वरिषव समय ऊपेखि । की फल पाव दिवस दिप लेखि ॥ ६ ॥ | भनइ विद्यापति असमय बानी । मुरुछल जीवय चुरु एक पानी ।। ८ ।। सखी। कुसुमे रचल सेज मलयज पङ्कज पेयास सुमुखि समाजे । कत मधु भास विलासे गमाओल अब पर कहइते लाजे ॥२॥ सखि हे दिन जनु काहु अवगाहे । सुरतरु तर सुखे जनम गमोल धुथुरा तर निरवाहे ॥४॥ दखिन पवन सऊरभ ऊपभोगल पिऊल अमिय रस सारे । कोकिल कलख ऊपवन पूरल तह्नि कत कयल विकारे ॥६॥ पातहि सजो फुल भमरे अगोरल तरुतर लेंलह्नि वासे । से फल काटि कीटे ऊपभोगल भमरा भेल ऊदासे ॥८॥ भनइ विद्यापति कलिजुग परिनति चिन्ता जनु कर कोइ । पन करम अपने पए भुजिय जो जनमान्तर होई ॥२०॥