पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३५८

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| विद्यापति । - - - शैशव पहु तेजि गेल रे । यौवन उपगत भेल रे ॥ ६ ॥ अब न जीयव विनु कन्तरे । विरहे जाव भेल अन्त रे ॥ ८ ॥ भनहि विद्यापति भान रे । सुपुरुष गुनक निधान रे ॥ २० ॥ राधा । त दिन माधव रव मथुरापुर कचे घुचव विहि वाम । दिवस लिख लिखि नखर खोयाग्रोल विसरल गोकुल नाम ॥ २ ॥ हरि हरि काहे कहव इह सम्वाद । सुमरि सुमरि नेह खिन भेल मझ देह जीवने अाय किए साध ॥ ४ ॥ पुरुव पियारि नारि हम अछले अव दुरशनहु सन्देह । भमर ममए भमि सबहु कुसुमे रमि न तेजय कमलिनि नेह ॥ ६ ॥ आश नियर करि जिउ कत राखवे अवहि से करत पयान । विद्यापति कह धैरज धर धनि मिलव तुरितहि कान ॥ ८ ॥ राधा । ६ ६ ६ सखि मोर पिया। अबहुँ न आओल कुलिश हिया ॥ २ ॥ नखर खोयाओहुँदिवस लिखि लिखि । नयन अन्धाओलें पिया पथ पेखि ॥ ४ ॥