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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३६१

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विद्यापति ।

पाप पराण आन नहिं जानत काह्न काह्न करि झर । विद्यापति कह निकरुण माधव गोविन्द दास रस पूर ॥८॥ राधा । मोहि तेज पिया मोर गेलाह विदेस । कौन परि खेपव वारि वएस ॥ २ ॥ सेज भेल परिमल फुल भेल वास । कतय भमर मोर परल उपास ॥ ४ ॥ सुमारे सुमारे चित नहि रह थीर । मदन दहन तन दगध शरीर ॥ ६ ॥ भनइ विद्यापति कवि जय राम । कि करत नाह दैव भेल धाम ।। ८ ।। रूपक सॉफहि निय सुख प्रेम पियाइ । कमालनि भमरी राखल छिपाई ॥ २ ॥ सेज भेल परिमल फुल भेल वासे । कतय भमरा मोर परल उपासे ।। ४ ।। भमि भमि भमरीवालमु निजखोजे । मधु पिवि मधुकर शुतल सरोजे ॥ ६ ॥ नई फुल कहेस नइ उगइ न सरे । सिनेहो नहि जाय जीव सौ भोरे || ६|| यो नदि कहे साख बालमु वाते । रइन समागम भइ गेल प्राते ।।१०।। भनष्ट विद्यापति शुनिये भमरी । बालमु अछि तोर अपनहि नगरी ॥१२॥