पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विद्यापति ।। तोहीं कोन बँधि देल हे उमता । । । ललित धाम तेजि वसथि मशाने हे । अमिय नहि पिवथि करथि विषपाने है ॥ ३ ॥ चानन नहि हित विभूति भूपणे हे । मणि नइधरह फणी केओन भूपने हे ॥ ५ ॥ हय गज रथ तेजि वसहा पलाने हे । पलानइ शुतथि शोभूमि शयानेहे ॥ ७ ॥ भनहि विद्यापति विपरीत काजे हे । अपनई भिखारी सेवक दीय राजे हे ॥ ६ ॥ चौधए विकट जटा । तेइ थिहु चँदिन फोटा ।। २ ॥ कत जुग सहस वयस वितिगेला । उमत महादेव सुमत न भेला ॥ ४ ॥ मौलि मेलए छार । सहजइ न तेजए पार ॥ ६ ॥ सुकवि विद्यापति गाउ । जीव सिवसिंह। राउ ॥ ८ ॥ शिव । थाइ त सुनिय उमा भले परिपाटी । उमगल फिरे भूत झोरी मोर काटी ॥ २ । झोरी काटिए मुसजटा काटि जीवे । सिरम चैसल सुरसरि जल पीवे ।। ४ । वेटारे कातिक एक पोसल मजूर । सेहो देखि डर भोर फणिपति झूर ॥ ६ ॥ तोह जे पोसल गौरी सिंह वड मोटा । सेहो देखि डर मोर वसहा गोटा ॥ ६॥ * भनहि विद्यापति वॉसक सिड्गा । तपवन नचथि धतिङ्गा तिङ्गा ॥१०॥