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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४९७

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•••• • • wwwww www . . विद्यापति । नायिका । आवह वैसह पिव लह पानि । जे ते खोजबह से देव आनि ॥ ८ ॥ ससुर भैसुर मोर गेलाह विदेस । स्वामिनाथ गेल छथि तनिक उदेस ॥१०॥ सासुघर आहुरि नैन नहि सूझ । बालक मोर वचन नहि बुझ ।। भनहि विद्यापति अपरूप नेह । येहन विरह हो तेहन सिनेह ॥ १२ ॥ पिया मोर बालक हम तरुणी । कोन तप चुकलैहि भेलैहि जननी ॥ २ ॥ पहिर लेल सखि एक छिनक चीर । पिया के देखैति मोर दगध शरीर ।। ४ ।। पिया लेलि गोदकें चललि बजार । हटियाक लोकपुछे के लागु तोहार ।। ६ ।। नहि मोर देर कि नहि छोट भाइ। पुरव लिखल छल स्वामी हमार ॥ ८॥ बाट रे बटोहिया कि तोही मोर भाइ । हमरो समाद नैहर लेने जाहु ॥१०॥ कहिहुन वा किनय धेनु गाइ । दुधवा पिलाय पोसत जमाइ ॥१२॥ नहि मोराटका अछि नहि धेनु गाइकोनइ विधि पोसव चालक जमाई ॥१४॥ भनइ विद्यापति सुनु व्रज नारी । धैरज धय रहु मिलत मुरारी ॥१६॥ १३ मोरा हिरे अङ्गना पाकड़ी सुनु चालहिआ। पटेवा आउग्र वास परम हरि बालहि ॥ २ ॥