पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/६

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विद्यापति ।

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दूती ।

किछु किछु उतपति अङ्कुर भेल । चरन चपल गति लोचन लेल ॥२॥
अब सब खन रहु आँचरे हात । लाजेसखि गने न पुछय बात ॥४॥
कि कहब माधव वयसक सन्धि । हेरइते मनसिज मन रहु बन्धि ॥६॥
तइअओ काम हृदय अनुपाम । रोपल घट उचल करि ठाम ॥८॥
शुनइते रस कथा थापय चीत । यइसे कुरङ्गिनि शुनए सङ्गीत ॥१०॥
शैशव यौवन उपजल बाद । केओ न मान ए जय अवसाद ॥१२॥
विद्यापति कौतुक बलिहारि । शैशव से तनु छोड़ नहि पारि ॥१४॥

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(१) अङ्कुर=उरजाडफुर।
(७) तइअओ=तथापि ।
(८) रापल घट उचल करि ठाम= ऊचा स्थान देख कर घट (कुच) आपन किया।



दूती ।

दिने दिने उन्नत पयोधर पीन । वाढल नितम्ब माझ भेल खीन ॥२॥ श्रावे मदन बढ़ाल दीठ । शैशव सकल चमकि देल पीठ ॥४॥ शैशव छोड़ल शशिमुखि देह । खत देइतेजल त्रिबलि तिन रेह ॥६॥ अब भेल यौवन वङ्किम दीठ । उपजले लाज हास भेल मीठ ॥८॥ दिने दिने अनङ्ग अगोरल अङ्ग । दलपति पराभवे सैनक भङ्ग ॥१०॥ तकर आगे तोहर परसङ्ग । बूझ करवजेन काजभङ्ग ॥१४॥ सुकवि विद्यापति कह पुन फोय । राधा रतन जैसे तुय होय ॥१२॥ ( ४ ) देल पीठ= पृष्ठ दिया, भाग गया। ( ६ ) सत = नासी पत (मट्टी में नाक घसना ) (१०) दुलपति = शैशव। (जव शशच गया ते शैशव के सकल लक्षण जाते रहे) (११-१२) तिसके सामने तुम्हारा प्रसङ्ग करती है अर्थात् तुम्हारा बात कहती हैं । ऐसा यूझके | काम करना कै कर्म भग नहीं है। (१३) फाय= खेलकर ( साफ़ साफ)