विनय-पत्रिका सर्व साधनोंसे हीन, मनमलीन, दुर्वल और पूग पापी मनुष्य आपकी दासी (तुलसी) का दास कहलाकर और आपका नाम ले-लेकर पेट भरता है ॥२॥ इसपर प्रभु कृपा करके पूछे कि वह कौन है, तो मेरा नाम और मेरी दगा उन्हें बता देना। कृपालु रामचन्द्रजीके इतना सुन लेनेसे ही मेरी सारी बिगड़ी बात बन जायगी॥ ३ ॥ हे जगज्जननीजानकीजी ! यदि इस दासकी आपने इस प्रकार वचनोंसे ही सहायता कर दी तो यह तुलसीदास आपके खामीकी गुणावली गाकर भव-सागरसे तर जायगा ॥ ४ ॥ [४२] कवहुँ समय सुधि द्यायवी, मेरी मातु जानकी । जन कहाइ नाम लेत हो, किये पन चातक ज्या, प्यास प्रेम-पानकी ॥१॥ सरल प्रकृति आपु जानिए करुना-निधानकी। निजगुन, अरिकृत अनहिती, दास-दोप सुरति चित रहत न दिये दानकी ॥२॥ बानि विसारनसील है मानद अमानकी । तुलसीदास न बिसारिये, मन करम वचन जाके, सपनेहुँ गति न आनकी ॥३॥ भावार्थ-हेजानकी माता | कभी मौका पाकर श्रीरामचन्द्रजीको मेरी याद दिला देना । मैं उन्हींका दास कहाता हूँ, उन्हींका नाम लेता हूँ, उन्हींके लिये पपीहेकी तरह प्रण किये बैठा हूँ, मुझे उनके खाती-जलरूपी प्रेमरसकी बड़ी प्यास लग रही है ॥१॥ यह तो आप जानती ही हैं कि करुणानिधान रामजीका स्वभाव
पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/७१
दिखावट