! 11 १९३७ ] पंद्रह वर्षसे कमका श्रामणेर नहीं [ ११९ माँगी। भिक्षुओंने उन्हें प्रव्रज्या और उपसंपदा दी। तब रातके भिनसारको उठकर वह (यह कह) रोते थे-'खिचळी दो! भात दो! खाना दो ! भिक्षु ऐसा कहते थे—'ठहरो आवुसो! जब तक कि विहान हो जाता है; यदि य वा गू (=पतली खिचळी) होगा तो पीना, यदि भात होगा तो खाना, यदि खाना होगा तो भोजन करना । यदि खिचळी, भात या खाना न होगा तो भिक्षा करके खाना।' भिक्षुओंके ऐसा कहनेपर भी वह रोते ही रहते थे---खिचळी दो ! ०।' और बिस्तरेपर लोटते- पोटते रहते थे। भगवान्ने रातके अन्तिम पहरमें उठकर बच्चोंके शब्दको सुनकर आयुष्मान् आनन्दको संबोधित किया- "आनन्द ! कैसा यह बच्चोंका शब्द है ?' आयुष्मान आनन्दने भगवान्से सव वात बतलाई। (भगवान्ने उन भिक्षुओंसे पूछा)- "भिक्षुओ! सचमुच जानबूझकर भिक्षु बीस वर्षसे कमके व्यक्तिको उपसंपदा देते हैं ?" "सचमुच भगवान् ! बुद्ध भगवान्ने-“कैसे भिक्षुओ! यह मोघ-पुरुष (=निकम्मे आदमी) जानते हुए बीस वर्षसे कमके व्यक्तिको उपसंपदा देते हैं ? भिक्षुओ! बीस वर्षसे कमका पुरुष सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, मच्छर-मक्खी, धूप-हवा, सरीसृप (=साँप, बिच्छू आदि रेंगनेवाले जीव) की पीळाके सहनेमें असमर्थ होता है। कठोर, दुरागतके वचनों (के सहनेमें), और दुखमय, तीव्र, खरी, कटु, प्रतिकूल, अप्रिय प्राण हरनेवाली उत्पन्न हुई शारीरिक पीळाओंको न स्वीकार करनेवाला होता है, भिक्षुओ ! बीस वर्ष वाला पुरुष सर्दी-गर्मी ० के सहने में समर्थ होता है । ० स्वीकार करनेवाला होता है । भिक्षुओ ! यह न अप्रसन्नोंके प्रसन्न करनेके लिये है० ।' निन्दा करके भगवान्ने धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! जानते हुए बीस वर्षसे कमके व्यक्तिको नहीं उ प संपदा देनी चाहिये। जो उपसंपदा दे उसे धर्मानुसार (प्रतिकार) करना चाहिये ।” 74 (७) पंद्रह वर्षसे कमका श्रामणेर नहीं ५-उस समय एक खान्दान महामारीके रोगसे मर गया। उसमें पिता-पुत्र (दोही) वच रहे। वह भिक्षुओंके पास जा प्रव्रजित हो एक साथही भिक्षाके लिये जाते थे। जव पिताको कोई भिक्षा देता था तो वह वच्चा दौळकर यह कहता था-'तात ! मुझे भी दो, तात ! मुझे भी दो।' लोग हैरान होते, धिक्कारते और दुखी होते थे-'शाक्यपुत्रीय श्रमण अ-ब्रह्मचारी होते हैं। यह बच्चा भिक्षुणीसे उत्पन्न हुआ है।' भिक्षुओंने उन मनुष्योंके हैरान होने०। (भगवान्ने यह कहा) "भिक्षुओ! पन्द्रह वर्षसे कमके वच्चेको नहीं श्रामणेर वनाना प्रव्रज्या देना) चाहिये। जो धामणेर बनाये उसे दुक्क ट का दोप हो।" 75 २-उस समय आयुप्मान् आ न न्द का एक श्रद्धालु प्रसन्न, सेवक-कुल महामारीसे मर गया। सिर्फ दो बच्चे बच रहे। वह (अपने घरकी) परिपाटीके अनुसार भिक्षुओंको देखकर दौळकर पाम आने थे। भिक्षु उन्हें फटकार देते थे। उन भिक्षुओंके फटकारनेसे वह रोने लगते थे । तव आयु- प्मान् आनन्दको मनमें ऐसा हुआ—'भगवान्की आज्ञा है कि पन्द्रह वर्षसे कमके बच्चेको श्रामणेर नहीं दनाना चाहिये, और यह बच्चे पन्द्रह वर्षसे कमके ही हैं। किस उपायसे यह बच्चे विनप्ट होनेसे बचाये जा सकते है ।' तव आयुप्मान् आनन्दने भगवान्ने यह बात कही। (भगवान्ने कहा)- - देखो पृष्ठ १०३ [ (३) १ क ] |
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