पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२०५

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१५४ ] ३-महावग्ग [ २०४६ या न रखे; उपोसथमें आये या न आये; संघ-कर्ममें आये या न आये; संघ गर्ग भिक्षुके साथ या उसके बिना उपोसथ करे, संघ-कर्म करे—यह सूचना है। ख. अ नु श्रा व ण-(१) "भन्ते ! संघ मेरी सुने-गर्ग भिक्षु उन्मत्त है। वह उपोसथको याद भी रखता है नहीं भी रखता० संघ गर्ग भिक्षुके उन्मत्त होनेका ठहराव करता है। गर्ग भिक्षु चाहे उपोसथको याद रखे या न रखे, संघ-कर्मको याद रखे या न रखे; उपोसथमें आये या न आये ; संघ- कर्ममें आये या न आये। संघ गर्ग भिक्षुके विना उपोसथ करेगा, संघ-कर्म करेगा। जिस आयुप्मान्को गर्ग भिक्षुके लिये उन्मत्त होनेका ठहराव०, पसन्द है वह चुप रहे, जिसको पसंद नहीं है वह बोले। ..। ग.धारणा- - 'संघने गर्ग भिक्षुके लिये उन्मत्त होनेका ठहराव स्वीकार किया० संघ गर्ग भिक्षुके साथ या गर्ग भिक्षुके विना उपोसथ करेगा, संघ-कर्म करेगा। यह संघको पसंद है, इसलिये चुप है-इसे मैं ऐसा समझता हूँ।" (५) उपोसथके लिये अपेक्षित वर्ग-संख्या उस समय एक आवासमें उपोसथके दिन चार भिक्षु रहते थे। तब उन भिक्षुओंको यह हुआ- 'भगवान्ने उपोसथ करनेका विधान किया है और हम चार ही जने हैं, कैसे हमें उपोसथ करना चाहिये।' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, चार (भिक्षुओं) के प्रातिमोक्ष-पाठकी।" 74 (६) शुद्धिवाला उपोसथ १-उस समय एक आवासमें उपोसथके दिन तीन भिक्षु रहते थे। तब उन भिक्षुओंको यह हुआ—'भगवान्ने चार भिक्षुओंके प्रातिमोक्ष-पाठकी अनुमति दी है और हम तीन ही जने हैं । कैसे हमें उपोसथ करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, तीनको शुद्धिवाले उपोसथके करनेकी।" 75 "और इस प्रकार करना चाहिये-चतुर समर्थ भिक्षु उन भिक्षुओंको सूचित करे-'आयु- ष्मानो ! मेरी सुनो, आज उपोसथ है। यदि आयुष्मानोंको पसंद हो तो हम एक दूसरेके साथ शुद्धि वाला उपोसथ करें।' (तब) स्थविर भिक्षुको एक कंधेपर उत्तरासंगकर, उकळू बैट, हाथ जोळ, उन भिक्षुओंसे ऐसा कहना चाहिये-'आवुसो ! मैं दोपोंसे शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझो, आवुसो ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझो; आवुसो मै शुद्ध हूँ मुझे शुद्ध समझो !' नये भिक्षुको एक कंधेपर उत्तरासंगकर उकळू वैठ, हाथ जोळ, उन भिक्षुओंसे ऐसा कहना चाहिये-'भन्ते ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझें, भन्ते! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझें; भन्ते ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझें।' २-उस समय एक आवासमें उपोसथके दिन दो भिक्षु रहते थे। तब उन भिक्षुओंको यह हुआ- 'भगवान्ने चारके प्रातिमोक्ष-पाठकी अनुमति दी है और तीनको शुद्धिवाले उपोसथको करनेकी किन्तु हम दो ही जने हैं, कैसे हमें उपोसथ करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ दोको शुद्धिवाला उपोसथ करनेकी।" 76 "और भिक्षुओ! इस प्रकार करना चाहिये-(पहले) स्थविर (=वृद्ध) भिक्षुको उत्तरा- संग एक कंधेपर कर, उकळू बैठ, हाथ जोळ, नये भिक्षुसे ऐसा कहना चाहिये-'आवुस ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझो; आवुस ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझो; आवुस ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझो।' (फिर) नये भिक्षुको एक कंधेपर उत्तरासंगकर, उकळं वैट, हाथ जोळ, स्थविर भिक्षुसे कहना चाहिये- 'भन्ते ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझें; भन्ते ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझें, भन्ते ! मैं शुद्ध हूँ, मुझे शुद्ध समझें।' 17 11