पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३०२

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६१६।३ ] पाँच गो-रसोंका विधान [ २४९ श्रेष्ठीको भगवान्ने आनुपूर्विककथा' कही ०/० मेंडक गृहपतिको उसी आसनपर विमल विरज धर्म- चक्षु उत्पन्न हुआ-'जो कुछ समुदय-धर्म है, वह निरोध-धर्म है।०। तब दृष्टधर्म० मेंडक गृहपतिने भगवान्से कहा-"आश्चर्य ! भन्ते !! आश्चर्य ! भन्ते !! जैसे कि भन्ते ! ० २ मैं भगवान्की शरण जाता हूँ, धर्म और भिक्षु-संघकी भी। आजसे भगवान् मुझे सांजलि शरणागत उपासक जानें । भन्ते ! भिक्षु-संघ-सहित भगवान् मेरा कलका भोजन स्वीकार करें।" भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया। मेंडक गृहपति भगवान्की स्वीकृतिको जान, आसनसे उठ, भगवान्को अभिवादनकर प्रद- क्षिणाकर चला गया। तव मेंडक गृहपतिने उस रातके बीतनेपर उत्तम खाद्य-भोज्य तैयार करा, भगवान्को काल मूचित कराया० । भगवान् पूर्वाह्ण समय पहिनकर पात्र-चीवर ले, जहाँ मेंडक श्रेष्ठीका घर था, वहाँ गये । जाकर भिक्षुसंघ-सहित बिछे आसनपर बैठे। तब मेंडक गृहपतिकी भार्या, पुत्र, पुत्र-वधु (=सुणिसा) और दास जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये ; जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गये । उनको भग- वान्ने आनुपूर्विक' कथा कही० । उनको उसी आसनपर विमल विरज धर्म-चक्षु उत्पन्न हुआ० । तब दृष्ट-धर्म० उन्होंने भगवान्को कहा- "आश्चर्य ! भन्ते !! आश्चर्य! भन्ते !! • हम भन्ते ! भगवान्की शरण जाते हैं, धर्म और भिक्षु-संघको भी। आजसे हमें भन्ते ! ० उपासक जानें !" तव मेंडक गृहपतिने अपने हाथसे बुद्ध-प्रमुख भिक्षु-संघको उत्तम खाद्य-भोज्यसे संतपितकर, पूर्णकर, भगवान्के भोजनकर, पात्रसे हाथ हटा लेनेपर० एक ओर वैठ गया। एक ओर बैठे मेंडक गृह- पतिने भगवान्से कहा- "जब तक भन्ते ! भगवान् भट्टियामें विहार करते हैं, तब तक मैं वुद्ध-सहित भिक्षु-संघकी ध्रुव-भवत (सर्वदाके भोजन)से (सेवा करूँगा)।" तव भगवान् मेंडक गृहपतिको धार्मिक कथा...(कह)...आसनसे उठकर चल दिये। तव भ द्दि या में इच्छानुसार विहारकर, मेंडक गृहपतिको विना पूछेही, साढ़े बारह सौके महान भिक्षु-संघके साथ, भगवान् जहाँ अंगुत्त रा प था, वहाँ चारिकाके लिये चल दिये। मेंडक गृहपतिने मुना, कि भगवान्० अंगुत्तरापको चारिकाके लिये चले गये। तव मेंडक गृहपतिने दासों और कमकरोंको आजादी- "तो भणे! बहुतसा लोन, तेल, मधु, तंडुल और खाद्य गालियोंपर लादकर आओ। साढ़े बारह नौ ग्वाले भी, नाड़े बारह नौ धेनु (दूध देनेवाली) गायोंको लेकर आवें। जहाँ हम भगवान्को देखेंगे, वहीं गर्मधारवाले दूधके साथ भोजन करायेंगे।" नब मेंडक. गृहपतिने रास्ते में एक जंगल (कांतार) में भगवान्को पाया । जहाँ भगवान् थे वहाँ गया, जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर खळा हो गया। एक ओर खळे हुए, मेंडक श्रेष्ठीने भगवान्ले कहा- "भन्ते ! भिक्षु-संघ-सहित भगवान् कलका मेरा भोजन स्वीकार करें।" भगवान्ने मानने स्वीकार किया। देखो पृष्ट ८४ । 'देखो पृष्ठ ८५। मंगेर और भागलपुर जिलोंका गंगाके उत्तरवाला भाग ।