पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३०४

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६६।६ ] आठ पानों और सभी फल-रसोंकी विकालमें भी अनुमति [ २५१ तब के णि य जटिलको हुआ-मैं श्रमण गौतमके लिए क्या लिवा चलूँ। फिर केणिय जटिलको हुआ- 'जो कि वह ब्राह्मणोंके पूर्वके ऋपि, मंत्रोंको रचनेवाले (=कर्ता), मंत्रोंका प्रवचन (=वाचन) करनेवाले थे,--जिनके पुराने मंत्र-पदको, गीतको, कथितको, समीहितको, आजकल ब्राह्मण अनुगान करते हैं, अनु-भापण करते हैं; भापितको ही अनु-भाषण करते हैं, बाँचेको ही अनु-वाचन करते हैं,- जैसेकि-अट्टक, वामक, वामदेव, विश्वामित्र, यमदग्नि, अंगिरा, भारद्वाज, वसिष्ठ, कश्यप, भृगु । (वह) रातको (भोजनसे) उपरत थे, विकाल--(मध्याह्नोत्तर) भोजनसे विरत थे। वह इस प्रकारके पान (पीनेकी चीज़) पीते थे । श्रमण गौतम भी रातको उपरत=विकाल-भोजनसे विरत हैं। श्रमण गौतम भी इस प्रकारके पान पी सकते हैं।' (यह सोच) बहुतसा पान तैयार करा, बँहगी (=काज) से उठवाकर, जहाँ भगवान् थे वहाँ गया। जाकर भगवान्के साथ संमोदन किया. . . (और) एक ओर खळा हो गया। एक ओर खळे हुए केणिय जटिलने भगवान्से कहा- "भगवान् (आप) ! गौतम यह मेरा पान ग्रहण करें।" “केणिय ! तो भिक्षुओंको दो।" भिक्षु आगा-पीछा करते ग्रहण नही करते थे। "भिक्षुओ! ग्रहण करो और खाओ।" तब केणिय जटिल बुद्ध-सहित संघको अपने हाथसे बहुतसे पान द्वारा संतर्पित संप्रवारित कर भगवान्के हाथ धो पात्रने हाथ हटा लेनेपर एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे केणिय जटिलको भगवान् ने धार्मिक कथा द्वारा संदर्शित-समादपित समुत्तेजित- संप्रहर्पित किया। भगवान्के धर्मोपदेश द्वारा० संप्रहर्पित (=हर्पित) हो केणिय जटिलने भगवान्से यह कहा- "आप गौतम ! भिक्षुसंघ सहित कलका भोजन स्वीकार करें।" ऐसा कहनेपर भगवान्ने केणिय जटिलसे यह कहा--"केणिय ! भिक्षुसंघ वळा है । साढ़े बारह सौ भिक्षु हैं, और तुम ब्राह्मणोंमें प्रसन्न (श्रद्धालु) हो।" दूसरी बार भी केगिय जटिलने भगवान् से यह कहा-"क्या हुआ, भो गौतम ! जो भिक्षुसंघ वळा है, साढ़े बारह सौ भिक्षु हैं, और मैं ब्राह्मणोंमें प्रसन्न हूँ ? आप गौतम भिक्षुसंघ सहित कलवा मेरा भोजन स्वीकार करें।" दूसरी बार भी भगवान्ने । तीसरी वार भी० । ० । भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया। तब केणिय जटिल भगवान्की स्वीकृति जान आसनसे उठ कार चला गया। नव भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें, धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, आठ पानों (=पेय वस्तुओं) की-आम्रपान, जम्बूपान, चोच- पान, मोच (: केला)-पान, मधु-मान, अंगूरका पान, सालूक (=कोईकी जळ)-पान, और फारुसक (: पाल्सा)-पान । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, अनाजके फलके रसको होळ, सभी फलोंके रसकी ; o एक हाकव गमवो छोळ, ननी पनोंके रसकी; ० एक महुए के फूलके रनको छोळ, सभी फूलोंके रसकी। अन्ना देता है, जब ग्नकी!" 118 तर नेणिय जटिलने उम रातके. बीतनेपर अपने आश्रममें उत्तम खाद्य-भोज्य तैयार करा, भगवान्दो कालमी गुचना दिलवाई-"मी गौतम ! (भोजनका) काल है, भोजन तय्यार है।" दर भगवन् पूर्वाण ननय पहिनकर, पाव-जीवर ले जहाँ कोणिय अटिलका आश्रम था, वहाँ गये । सागर भिक्षु- मंदिरे आननपर बैठे। तब कैमिय अटिलने बुद्ध-महित भिक्षु-नंघको अपने नार-मोजाग नि मास्ति किया। भगवान् साकर हाथ उठा लेनेपर