पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३२

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[ २५ ] " " 11 11 1 पृष्ठ (२) परिवासके बाद छ रातवाला मानत्त्व ३७४ (३) मानत्त्वके बाद आह्वान ग-(१) दो पांच दिनके छिपायेके लिये पांच दिनका परिवार (२) बीचमें फिर उनी दोएके लिये मूलसे- प्रनिकर्षण (8) फिर उसी दोपके लिये मूलये-प्रतिकर्षण (४) तीनों दोपोंके लिये छ दिन-रातका मानत्त्व (५) मानव पूरी करने फिर उसी दोषक कन्नेके लिये मूलसे-प्रतिकर्षण कर छ गतका मानव ३७६ (६) फिर वही करने के लिये मूलस-प्रतिकर्षण कर छगनका मानत्त्व (५) ड पूरा कर लेने पर आह्वान घ-(१) पक्षभर छिपायेके लिये पक्षभन्का पग्विास (6) पि.र पांच दिन छिपाये उसी दीपक निये मलये-प्रतिवाणकर यमवधान पग्विास (३) फिर उनी आपनितके लिये मलने- प्रतिकार्पण द समबधान-परिवार (1) पि.र वही दोपकारने के लिये समवधान- परिवान दे..'गनका मानव (५) पि.र वही दोप न करने के लिये मूलग- प्रतिनपण कर समबधान-पग्विाम दे रगतका मानव (६) मानन्द पूरा करनेपर आहवान (२. परिदास- (१) अन्य लोक हिपानेले बहनने नंघा- धिोगमापांग लिपाय दिन. अनमार 11 पृष्ठ (३) मानत्त्व ३८५ (४) मानत्त्व-चरण (५) आह्वान १४. दंड भोगते समय नये अपराध करने ३८५ क. परिवाम (१) मूलये प्रतिकर्पण (२) मानत्त्वाह (३) मानत्त्वचारी (४) आह्वानाह ख. मानत्त्व (१) गृहस्थ वन जना (२) श्रामणेर बन जाना ३८८ (३) पागल हो जाना (४) विक्षिप्त-चित्त हो जाना (५) बेदन (=बदहवास) हो जाना F५. मूलसे-प्रतिकर्षण दंडमें शुद्धि ३८८ क. परिवास ३८८ (१) गृहन्ध होना (२) श्रामणेर होना (३) पागल होना (८) विक्षिप्त होना (५) वेदनट्ट होना व.मानत्व (१) गृहन्ध होना (3) श्रामणेर होना (३) पागल होना (६) विक्षिप्त होना ( . ) वेदनट्ट होना ग. मानन्द-वाग्वि (१) गृहन्थ होना (:) श्रामणेर होना 1) पागल होना 2) बिमित होना . ) 11 11 11 " 11 1.)गाननवान मानदेनोग्य व्यक्ति " कारा पापा लेतेर पहिलेदे EिR गदि हर

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