पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३३२ ] ३-महावग्ग [ १०११३८ कि म्बि ल प्राचीन-वंश-दावमें विहार करते थे । दाव-पालक (=वन-पाल)ने दूरसे ही भगवान्को आते देखा । देखकर भगवान्से कहा- "महाश्रमण ! इस दावमें प्रवेश मत करो। यहाँपर तीन कुल-पुत्र यथाकाम (=मौजसे) विहर रहे हैं उनको तकलीफ मत दो।" आयुष्मान् अनुरुद्धने दाव-पालको भगवान्के साथ बात करते सुना । सुनकर दाव-पालसे यह कहा- "आवुस ! दाव-पाल ! भगवान्को मत मना करो। हमारे शास्ता भगवान् आये हैं।" तब आयुष्मान् अनुरुद्ध जहाँ आयुष्मान् नन्दिय और आयु० किम्बल थे वहाँ गये । जाकर बोले.. "आयुष्मानो ! चलो आयुष्मानो ! हमारे शास्ता भगवान् आगये । तब आ० अनुरुद्ध, आ० नन्दिय, आ० किम्बल भगवान्की अगवानीकर, एकने पात्र-नीवर ग्रहण किया, एकने आसन विछाया, एकने पादोदक रक्खा । भगवान्ने बिछाये आसनपर बैठ पैर धोये । वे भी आयुष्मान् भगवान्को अभिवादनकर, एक ओर बैठ गये। एक ओर बैठे हुए आयुप्मान् अनुरुद्धसे भगवान्ने कहा- "अनुगद्धो ! खमनीय तो है ? यापनीय तो है ? पिंडके लिये तो तुम लोग तकलीफ नहीं पाते ?" "खमनीय है, भगवान् ! ०" "अनुल्दो ! क्या एकत्रित, परम्पर मोद-सहित, दूध-पानी हुए, परम्पर प्रिय-दृष्टिमे देखते, विहरते हो?" "हाँ भन्ते ! म एकत्रित ।" "तो कैसे अनुमद्धो ! तुम एकत्रित ?" "भन्ते ! मुझे, यह विचार होता है-'मेरे लिये लाभ है ! मेरे लिये गुलाभ प्राप्त हुआ है, जो ऐसा स-ब्रह्मचारियों (=गुरु भाइयों) के माथ विहरता हूँ । भन्ने ! इन आयुष्मानोंमें मेग कागित कर्म अन्दर और बाहरने मित्रता-पूर्ण होता है; वाचिक-कर्म अन्दर और बाहग्गे मित्रता-पूर्ण होता है: मानसिककर्म अन्दर और बाहर । नव भन्ने ! मुझे यह होता है---गों न में अपना मन हटा कर, इन्हीं आयप्मानोंके चित्तके अनुसार वर्तृ । मो भन्ने ! मैं अपने चिनको हटाकर उन्हीं आयामानो के चित्तोंका अनुवर्तन करता हूँ। भन्ले ! हमाग गरीर नाना है, किन्तु चिन एक.... आयुष्यमान् नन्दियने भी कहा--"भन्ते ! मझे यह होता है।" आयुष्मान् किम्बिलने भी कहा-भन्ने ! मुझे यहः । "माधु, माधु. अनुन्द्रो ! अनुट्टो ! क्या तुम प्रमाद-हिन. अलग्य-हिन, गयी हो, विहग्ने हो?" "भन्ने ! हाँ! हम प्रमाद-रहितः । "अनुग्दो ! तुम ने प्रमाद-रहित ? भन्ने ' हमाम मा परिने ग्राम मिलाया लौटता है, वह आमन लगाता है, पीने का पानी नन्दना है. उनकी थाली नागपी गांव पिंडचार करके लौटना है, (वह) भोजन (मो) बचा रहता है. यदि दाना है. माता (दि) नहीं चाहता है, नो (मे) म्यान. जहां त्याली न हो. छोट देता है, या बटना मार्ग देता है । आननोंको मोटवा है । पन्चे पायो मोटता है । वो पार्ज । खानेत्री जहार झार देता है । पार को पीने .. या पाया: "