पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४६४

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1 जाये; ४१२१५ ] तत्पापीयसिक [४०३ "क. ज्ञ प्ति--'भन्ते ! संघ मेरी सुने, यदि संघ उचित समझे, तो संघ अमुक नामवाले भिक्षुको श ला का ग्र हा प क चुने—यह सूचना है। "ख. अनु श्रा व ण-(१) 'भन्ते ! संघ मेरी सुने, संघ अमुक नामवाले भिक्षुको श ला- का व हा प क चुन रहा है, जिस आयुष्मान्को अमुक नामवाले भिक्षुके लिये शलाकाग्रहापक होनेकी सम्मति पसंद है, वह चुप रहे, जिसे पसंद न हो वह वोले "(२) दूसरी बार भी, 'भन्ते ! संघ मेरी सुने ।' " (३) 'तीसरी वार भी, 'भन्ते ! संघ मेरी सुने।' "ग. धा र णा-'संघने अमुक नामवाले भिक्षुको शलाकाग्रहापक चुन लिया। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ।' -"भिक्षुओ! दस अधार्मिक श ला का ग्रहण (वोट देना) हैं, दस धार्मिक।" (ख) न्या य विरुद्ध सम्म ति दा ता--"कैसे दस अधार्मिक शलाकाग्राह हैं ?--(१) अवेर- मत्तक अधिकरण (झगळा) होता है; (२) नहीं गतिमें गया होता है; (३) और नहीं याद कराया करवाया होता है; (४) जानता है कि अधर्मवादी बहुतर (=अधिक संख्या बहुमत) हैं; (५) शायद अधर्मवादी बहुतर हों; (६) जानता है, संघ फूट जायेगा; (७) शायद संघ फुट (८) अ धर्म से (गलाका) ग्रहण करते हैं; (९) व र्ग से ग्रहण करते हैं; (१०) अपनी दृष्टि (=मत) के अनुसार (शलाका) ग्रहण करते हैं। यह दस अधार्मिक शलाकाग्राह हैं। 86 (ग) न्या या नु सा र सम्म ति दा न-"कौनसे दस धार्मिक शलाकाग्राह हैं?-(१) अधिकरण अवे र म त क नहीं होता; (२) गतिमें गया होता राहसे है; (३) याद करा कर- वाया होता है; (४) जानता है, कि धर्मवादी बहुत हैं; (५) शायद धर्मवादी बहुत हैं; (६) जानता है, संघ नहीं फूटेगा; (७) शायद संघ नहीं फूटेगा; (८) धर्म से (शलाका) ग्रहण करते हैं; (९) स म ग्र' हो (शलाका) ग्रहण करते हैं; (१०) अपनी दृष्टि (=मत) के अनुसार ग्रहण करते हैं। यह दस धार्मिक शलाकाग्राह हैं। 87 (५) तत्पापोयसिक (क) पूर्व क था-उस समय उ वा ळ भिक्षु संघके बीच आपत्तिके विषयमें जिरह (= उद्योग) करनेपर इन्कारकर स्वीकार करता था, स्वीकार करके इन्कार करता था। दूसरे (प्रकरण) में दूसरी (बात) चन्ला देता था। जानबूझकर झूठ बोलता था। जो वह अल्पेच्छ भिक्षु थे,०। उन्होंने भगवान्ने यह बात कही ।- "तो भिक्षुओ! मंघ उ वा ळ भिक्षुका त त्या पी य सि क कर्म (=दंड) करे। 88 "और भिक्षुओ! इस प्रकार करना चाहिये-पहिले उबाळ भिक्षुको चोदित करना चाहिये, चोदिनकर मरण दिलाना चाहिये, स्मरण दिला आपनिका आरोप करना चाहिये। आपत्ति आरोप- कर चतुर नगर्थ भिक्ष संघको सूचित करे-~०२ । ग. धारणा-"नंघने उदाळ निश्का तत्यापीयमिक कर्म कर दिया। मंघको पसंद है, इसलिये चपना मैं ने नमलता है। (द) किस मा नार-"भिभुशो! तत्यापीयनिक कर्मका करना इन पांच (प्रकार) दिलो महारण एट २९८ । रचना, तीन अन्धारण चल्ल ४९३४ (ख) ऊपर जमा ।