पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४८७

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८-० ४२४ ] ४-चुल्लवग्ग [ ५७१।१० "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ रेखा डालनेकी ।" 31 ४--शिकन (=बलि) पळ जाती थी।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ म क र दंत (=मगरदन्ती खूटी) काटनेकी ।" 32 ५---उस समय पड्वर्गीय रूप (=मूर्ति) खींचे हुए, भित्तिकर्म किये ( रंगसे चित्र खींचे) चित्र (विचित्र) पात्र-मंडल को धारणकर सळकपर घूमते थे। लोग हैरान होते थे० । भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ! रूप खींचे हुए, रंगसे चित्र खींचे पात्र-मंडलको न धारण करना चाहिये, जो धारण करे उसे दुक्क ट का दोष हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ प्रकृ ति मंडल की ।" 33 ६-उस समय भिक्षु पानीसहित पात्रको सँभाल रखतेथे, पात्रमें दुर्गन्ध आने लगती थी। भग- वान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ! पानीसहित पात्रको नहीं रख छोड़ना चाहिये, जो रख छोळे उसे दुक्कटका दोप हो। भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, धूप दिखलाकर पात्रको रखनेकी । 34 ७–पानी सहित पात्रको तपाते थे, पात्रमें दुर्गन्ध आती थी। भगवान्से यह बात कही। - "०पानीसहित पात्रको न तपाना चाहिये, दुक्कट ० । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, पानी खाली कर धूप दिखला पात्रको रखनेकी । 35 धूपमें पात्रको डाहते थे, पात्रका रंग विकृत होता "०धूपमें पात्रको नहीं डाहना चाहिये, दुक्कट० । अनुमति देता हूँ, मूहूर्तभर धूपमें रख पात्र- को रख देनेकी ।" 36 ९-० उस समय बहुतसे पात्र खुली जगहमें आधारके विना रक्खे थे, बवंडरने आकर पात्रोंको तोळ दिया। भगवान्से यह बात कही।- "०अनुमति देता हूँ, पात्रके आधारकी।" 37 १०-०उस समय भिक्षु वारीपर पात्रको रखते थे, गिरकर पात्र टूट जाते थे । भगवान्से यह बात कही ।- "भिक्षुओ! वारीपर पात्रको न रखना चाहिये, ०दुक्कट० ।” 38 ११-उस समय भूमिपर पात्रको औंधा देते थे, पात्रोंकी वारी घिस जाती थी। भगवान् ।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, (नीचे) तृण विछानेकी।" 39 १२-तृणके बिछौनेको कीळे खा जाते थे। ०।- "०अनुमति देता हूँ, चो ल क (=पोतन) की ।” 40 १३-चो ल क को कीळे खा जाते थे । ०।- "०अनुमति देता हूँ, पात्र-मा ल क (= घिडोंची? घळथही) की ।" 41 १४–पात्र-मालकने गिरकर पात्र टूट जाते थे । ० ।-- "०अनुमति देता हूँ, पात्र-कंडोलिका (गेंळुल) की।" १५-पात्र-कंडोलिकासे पात्र धिम जाते थे। ०।- "अनुमति देता हूँ, पात्रके थैले (=म्यविका) की ।" 43 १६-मंबंधक (गर्दन बांधनेका बंधन) न था । भगवान् ०।- 'अनुमति देता है मंबंधककी, और बांधनेकी मुतलीकी ।” 44 १३-उम ममय भिक्षु भातकी झूटीपर, ना ग दन्त क (=हथिदन्ती यूंटी) पर में पात्रको लटका देते थे, गिरकर पात्र टूट जाता था । ०।- 66 44 42