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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५०१

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४३६ ] ४-चुल्लवग्ग [ ५७ "भिक्षुओ! आठ बातोंसे युक्त उपासकके लिये संघ पत्त-उपकुज्जन (=पात्र उघाळना) करे- (१) भिक्षुओंके अलाभके लिये०, (२)० अनर्थके लिये०; (३) ० अवासके लिये प्रयत्न नहीं करना; (४) भिक्षुओंकी आक्रोश परिहास नहीं करता; (५) भिक्षुओंकी आपसमें फूट नहीं करता; (5) बुद्धकी निन्दा नहीं करता; (७) धर्मकी निन्दा नहीं करता; (८) संघकी निन्दा नहीं करता।- इन पाँच०] 179 "और भिक्षुओ! इस प्रकार पत्त-उक्कुज्जन करना चाहिये--चतुर समर्थ संघको सूचित करे- "क. ज्ञप्ति। ग्व. अनु श्रा व ण ०। "ग. धा र णा-'संघने वड्ढ लिच्छवीके लिये पात्र उघाळ दिया। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इमे समझता हूँ।" ३-~-सुंसुमारगिरि तब भगवान् वैशालीमें इच्छानुसार विहारकर जिधर भर्ग है उधर चारिकाके लिये चल पने, त्रमशः चारिका कन्ते जहाँ भर्ग था, वहाँ पहुँचे । वहाँ भगवान् भर्ग (देश) के सं सु मा र गिरि के भेम कला व न के मृ ग दा व में विहार करते थे। (७) बोधिराजकुमारका सत्कार उस समय बोधि गजकुमारने श्रमण या ब्राह्मण या किसी भी मनुष्यसे न भोगे को क न द नामक प्रासादको हालहीमें बनवाया था। तब वोधि-राजकुमाग्ने मंजि का पुत्र माणवकको संबोधित किया-- "आओ तुम मौम्य ! मंजिकापुत्र ! जहाँ भगवान् हैं, वहाँ जाओ। जाकर मेरे वचन मे, भग- बान्के चरणों में गिग्मे बन्दनाकर, आरोग्य, अन-आतंक, लघु-उत्थान (=गरीरकी कार्यक्षमता)वल, अनु. कूल विहार, पूछो-'भन्ते ! बोधि-राजकुमार भगवान्के चरणोंमें गिरमे वन्दनाकर आरोग्य० पुछना है, और यह भी कहो-'भन्ने ! भिक्षु-मंघसहित भगवान् बोधि-राजकुमारका कलका भोजन स्वीकार "अच्छा हो (भो), कह मंजिका-पुत्र माणबक जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्गे (कृाल प्रश्न) ...पूछ, एक ओर बैट गया। एक ओर बैठकर मंजिका-पुत्र माणवकने भगवान्ने कहा-“हे गौतम ! बोधि-राजकुमार आपके चरणोंमें ० । बोधिगज-कुमारका कलका भोजन म्वीकार करें।" भगवान्ने मानहान म्बीकार किया । तब मंजिका-पुत्र माणवक भगवान्की स्वीकृति जान, आमनने उट जहां बोधि-गजकुमार था, वहाँ गया । जाकर बो धि गजकुमाग्मे बोला-- "आपके बत्रनमें मैने उन गौतमको कहा-'हे गौतम ! बोधि-गजकुमार० । श्रमण गौतमने स्वीकार किया।" नब बोधि गजमाग्ने उन गत बीतने पर अपने घरमें उनम ग्वादनीय भोजनीय (पदार्थ। या कादा, को क न द-प्रामादको मद ( - अवदात। धम्माम मीढीवं. नीचे तक बिछया, गंजिकार मापवरको संबोधित किया- "आओ मोम्म ! मंदिकापुत्र ! जहां भगवान हैं, वहां जाकर भगवान्को काल गही-- 'भले! शाल है. भात भोजन) तैयार हो गया।