पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. ६३।१] अनाथपिडिककी दीक्षा [ ४६१ था, वहाँ गए । जाकर भिक्षुसंघ सहित विछाये आसनपर बैठे। तब अनाथ-पिंडिक गृह-पति बुद्ध-सहित भिक्षु-संघको अपने हाथसे उत्तम खाद्य भोज्यसे संतपित कर, पूर्णकर, भगवान्के भोजनकर, पात्रसे हाथ खींच लेनेपर, एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे अनाथ-पिंडिक गृह-पतिने भगवान्से कहा-~- "भिक्षु-संघके साथ भगवान् श्रावस्ती में वी - वा स स्वीकार करें।" "शून्य-आगारमें गृहपति ! तथागत अभि र म ण (=विहार ) करते हैं।" "समझ गया भगवान् ! समझ गया सु ग त ! उस समय अनाथ-पिंडिक गृह-पति बहु-मित्र-बहु-सहाय, और प्रामाणिक था। रा ज गृह म (अपने ). . .कामको खतमकर, अनाथ-पिंडिक गृह-पति श्रावस्तीको चल पळा। मार्गमें' उसने मनुष्योंको कहा-"आर्यों ! आ रा म बनवाओ, वि हा र ( भिक्षुओंके रहनेका स्थान) प्रतिष्ठित करो। लोकमें बुद्ध उत्पन्न हो गये हैं; उन भगवान्को मैंने निमंत्रित किया है, (वह) इसी मार्गसे आवेंगे।" तब अनाथ-पिंडिक गृह-पति-द्वारा प्रेरित हो, मनुष्योंने आराम बनवाये, विहार प्रतिष्ठित किये दान (सदाव्रत) रक्खे। तव अनाथ-पिंडिक गृह-पतिने श्रावस्ती जाकर, श्रावस्तीके चारों ओर नजर दौळाई-- "भगवान कहाँ निवास करेंगे? (ऐसी जगह) जो कि गाँवसे न बहुत दूर हो, न वहुत समीप; चाहनेवालोंके आने-जाने योग्य, इच्छुक मनुष्योंके पहुँचने लायक हो। दिनको कम भीळ, रातको अल्प- शब्द-अल्प - नि ? ष, वि - ज न-वात ( आदमियोंकी हवासे रहित), मनुष्योंसे एकान्त, ध्यानके लायक हो।" अनाथ-पिंडिक गृहपतिने (ऐसी जगह) जे त रा ज कु मा र का उद्यान देखा; (जो कि) गाँवमे न बहुत दूर था । देखकर जहाँ जेत राजकुमार था, वहाँ गया। जाकर जेत राजकुमारसे कहा- "आ र्य - पुत्र ! मुझे आराम बनानेके लिये (अपना) उद्यान दीजिये ! "गृहपति ! 'को टि - संथा र मे भी, (वह) आराम अ-देय है।" "आर्य-पुत्र ! मैंने आराम ले लिया।" "गृहपति ! तूने आराम नहीं लिया ।" ‘लिया या नहीं लिया', यह उन्होंने व्य व हा र - अ मा त्यों (न्यायाध्यक्ष) से पूछा। महामात्योंने कहा- "आर्य-पुत्र ! क्योंकि तूने मोल किया, (इसलिये) आराम ले लिया।" तव अनाथ-पिडिक गृहपतिने गाळियोंपर हि र ण्य (=मोहर) ढुलवाकर जेतवनको 'को टि- मन्था र (=किनारेले किनारा मिलाकर) बिछा दिया। एक बारके लाये (हिरण्य) से (द्वारके) कोठेके चारों ओरका थोळाना (स्थान) पूरा न हुआ। तव अनाथ-पिडिक गृहपतिने (अपने) मनुष्योंको आना दी-- "जाओ भणे ! हिरण्य ले आओ, इस खाली स्थानको ढाँकेंगे।" तब जे त रा ज कु मा र को (ज्याला) हुआ--"यह (काम) कम महत्त्वका न होगा, जिसमें कि यह गृहपति बहुत हिरण्य खर्च कर रहा है। (और) अनाथ-पिडिक गृहपतिको कहा- 'जो धनी थे उन्होंने अपने दनाया, जो कम धनी या निर्धन थे, उन्हें धन दिया। इस प्रकार दह. . .पैतालोस योजन रास्ते, योजन योजनपर विहार दनदा श्रावस्ती गया (--अट्ठकथा)। इस प्रकार अटारह करोळका एक चहबच्चा खाली हो गया।......दूसरे आठ करोळसे आट एलीन भूमिमें यह विहार आदि बनवाये (अट्टकथा )।