पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५३१

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11 ( 10 ! 9 ४६४ ] ४-चुल्लवग्ग [ ६९३५ "तब भिक्षुओ! तित्तिर और मर्कट (=वानर) ने हस्ति-नागसे पूछा- 'सौ म्य ! तुम्हें क्या पुरानी (वात) याद है ?' 'सौम्यो ! जब मैं बच्चा था, तो इस न्य ग्रो ध (बर्गद) को जाँघोंके वीचमें कन्के लांब जाता था। इसकी पुनगी मेरे पेटको छूती थी। 'सौम्यो ! यह पुरानी बात मुझे स्मरण है।' "तब भिक्षुओ! तित्तिर और हस्ति-नागने वानरसे पूछा- " 'सौम्य ! तुम्हें क्या पुरानी (वात) याद है ?' 'सौम्यो! जब मैं बच्चा था, भूमिमें बैठकर इस वर्गदके पुनगीके अंकुरोंको ग्वाना था। मौम्यो ! यह पुरानी। "तब भिक्षुओ ! वानर और हस्ति-नागने तित्तिरसे पूछा- सौम्य ! तुम्हें क्या पुरानी (वात) याद है ?' 'सौम्यो! उस जगहपर महान् वर्गद था, उससे फल खाकर इस जगह मैंने विप्टा की, उसीने यह वर्गद पैदा हुआ। उस समय सौम्यो ! मैं जन्मसे बहुत सयाना था।' “तव भिक्षुओ ! हाथी और वानरने तित्तिरको यों कहा- " 'सौम्य ! तू जन्ममें हम सबसे बहुत बळा है। तेरा हम सत्कार करेंगे, गौरव करेंगे, मानेंगे, पूजेंगे, और तेरी सीखमें रहेंगे।' "तव भिक्षुओ! तित्तिरने वानर और हस्ति-नागको पाँच शील' ग्रहण कराये, आप भी पाँच शील ग्रहण किये। वह एक दूसरेका गौरव करते, सहायता करते, साथ जीविका करते हुये विहारकर; काया छोळ मरनेके वाद, सुगति (प्राप्त कर) स्वर्ग लोकमें उत्पन्न हुये । यही भिक्षुओ ! तैत्तिरी य-ब्रह्म च ये हुआ- धर्मको जानकर जो मनुष्य वृद्धका सत्कार करते हैं। (उनके लिये) इसी जन्ममें प्रशंसा है, और परलोकमें सुगति।' "भिक्षुओ! वह तिर्य ग् (=पशु) यो नि के प्राणी (थे, तो भी) एक दूसरेका गौरव करते, सहायता करते, साथ जीवन-यापन करते हुये, वि हा र करते थे। और भिक्षुओ! यहाँ क्या यह शोभा देगा, कि तुम ऐसे सु-व्याग्यात धर्म-विनयमें प्रवजित होकर भी, एक दूसरेका गौरव न करते, सहायता न करते, साथ जीवन-यापन न करते (हुये) विहार करो। भिक्षुओ! यह न अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है।" धिक्कारकर धार्मिक कथा कहके उन भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! बृद्ध-पनके अनुनार अभिवादन, प्रत्युत्थान, (वळेके सामने खळा होना), हाथ जोलना, कुगल-प्रश्न, प्रथम-आमन, प्रथम-जल, प्रथम-परोसा देनेकी अनुज्ञा करता हूँ। सांघिक वृद्धपनके अनुसरणको न तोळना चाहिये, जो तोळे उसको 'दुष्कृत' की आपत्ति (होगी)। "भिक्षुओ! यह दग अ-वन्दनीय हैं- (५) वन्दनाका क्रम पूर्वके उप - सम्पन्न को पीछेका उप सम्पन्न' अ-वन्दनीय है। अन्-उगसम्पन्न अवंदनीय है। नाना मह-बानी, बृद्ध-नर अ-धर्म-दादी । स्त्रियाँ । नपुंसक । 'परिवाम'५ दिया गया। (1 ५ अहिना, मन्य, अम्नेय, ब्रह्मचर्य, मद-वर्जन। भिक्षु-नियमके अनुमार छोटा पाप है। भिक्षुषी दीक्षाको प्राप्त। "अपराधके कारण संघ द्वारा कुछ दिनके लिये पृथक्करण ।