जो काम करने में लगती, इधर उधर की बातों में व्यय हो जाती
है जिसका फल कुछ नहीं होता। केवल उसी समय, जब कि
चित्त शांत और एकाग्र रहता है, सारी शक्तियाँ अच्छे काम में
व्यय होती हैं। और यदि आप उन बड़े बड़े कर्मवीरों के जीवन-
चरित्र को, जो संसार में हो गए हैं, देखें तो आपको जान
पड़ेगा कि वे कैसे शांत प्रकृति के लोग थे। कोई वस्तु उनकी
शांति को भंग नहीं कर सकती थी। यही कारण है कि वह
मनुष्य जिसे क्रोध आता है, अधिक काम नहीं कर सकता;
और वह पुरुष जिसे किसी कारण से क्रोध नहीं आता, बहुत
अधिक काम कर डालता है। जो पुरुष क्रोध, घृणा वा अन्य
मनोविकारों के वशीभूत रहता है, वह काम नहीं कर सकता।
वह अपना सत्तानाश करता है और कुछ काम की बात नहीं
कर सकता है। केवल शांत, क्षमाशील, अनुद्विग्न और स्थिर-
चित्त मनुष्य ही सबसे अधिक काम कर सकते हैं।
वेदांत एक आदर्श की शिक्षा देता है; और यह आदर्श जैसा कि हम जानते हैं, सदा कहीं अधिक सच्चा और हम कह सकते हैं कि कहीं अधिक काम का होता है। मनुष्य की प्रकृति में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि वह आदर्श को अपने जीवन के अनुकूल बनाता है; और दूसरी यह कि वह अपने जीवन को आदर्श के अनुकूल करता है। इसका सम- झना बहुत बड़ी बात है। पहली प्रवृत्ति हमारे जीवन के विकार का हेतु मात्र है। मैं समझता हूँ कि मैं केवल किसी विशेष प्रकार