पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१४१

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अपितु उनका विश्वास है कि जो इनकी बातें नहीं मानता, वह नरक में पड़ेगा। कितने तो दूसरों को मनवाने के लिये तलवार लेकर खड़े हो जाते हैं। इसका कारण दुष्टता नहीं है, अपितु यह मस्तिष्क का एक विशेष रोग है जिसे धर्मोन्माद कहते हैं। ये धर्मोन्माद रोग-ग्रस्त लोग बड़े सच्चे होते हैं। ऐसे सच्चे कम मनुष्य मिलते हैं। पर दुःख इतना ही है कि जैसे अन्य पागल संसार में अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझते, वैसे इन्हें भी उसका बोध नहीं है। यह धर्मोन्माद का रोग सारे रोगों से अत्यंत दारुण रोग होता है। इससे मनुष्य की प्रकृति के सारे दुर्गुण जाग्रत हो जाते हैं। क्रोधाग्नि प्रज्वलि हो उठती है, नाड़ियों में रक्त का प्रवाह उबलने लगता है और मनुष्य पशु वा हिंसक जंतु बन जाता है।

क्या पुराणों में एकता है? क्या सबके पुराणों की बातें मिलती जुलती हैं? क्या कोई ऐसा भी पुराण है जिसकी बातें सब धर्मवाले मानते हों? इन प्रश्नों का उत्तर यही है कि ऐसा कहीं नहीं है। सब धर्मवालों के पुराण अलग अलग हैं। भेद यही है कि सब यह कहते हैं कि हमारी कथाएँ सत्य हैं। हम इस बात को उदाहरण से स्पष्ट करना चाहते हैं। उदाहरण से मेरा अभिप्राय किसी का खंडन करना नहीं है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईश्वर पंडुक का रूप धारण करके पृथ्वी पर आया। वे इस कथा को सत्य मानते हैं; और पुराणों की बातें नहीं मानते। हिंदुओं का विश्वास है कि गौ ईश्वर का रूप है।