कुशल हैं, पर वे आभ्यंतर वा अध्यात्म विषय की छानबीन में
व्युत्पन्न नहीं हैं। इसके विरुद्ध पूर्वीय लोग बाह्य भौतिक विज्ञान
के विषय में उतने प्रबल पंडित तो नहीं हैं, पर वे आध्यात्मिक
विज्ञान में बड़े ही दक्ष हैं। यही कारण है कि पूर्वीय भौतिक
विज्ञान वा वैशेषिक पश्चिमीय भौतिक विज्ञान से नहीं मिलता;
और पश्चिमवालों के मनोविज्ञान आदि पूर्ववालों के योग और
वेदांत के विरुद्ध हैं। पश्चिमी वैज्ञानिकों ने पूर्वी वैशेषिक-शास्त्रज्ञों
को परास्त कर दिया है। साथ ही इसके यह सब का कथन है
कि हमारा आधार सत्य पर है। और जैसा कि हम पूर्व में कह
आए हैं, वास्तविक सत्यता किसी विज्ञान की क्यों न हो, एक
दूसरे की विरोधी न होगी। आभ्यंतर सत्य बाह्य सत्य के अनु-
कूल ही होता है।
हम यह भली भाँति जानते हैं कि आधुनिक ज्योतिषियों और वैज्ञानिकों के विश्वविधान का विचार किस प्रकार यूरोप के धर्म की जड़ काट रहा है; यह वैज्ञानिक अन्वेषण किस प्रकार के होते हैं और वे धर्म के गढ़ पर कैसे गोले बरसा रहे हैं। हम यह भी जानते हैं कि धर्मवालों ने किस प्रकार इन अन्वेषणों को रोकने का प्रयत्न किया है।
मैं यहाँ पूर्वीय सांख्ययोग की कुछ बातों का जो विश्व विधान के संबंध में हैं, तो वर्णन करना चाहता हूँ। आपको यह आश्चर्य्य जान पड़ेगा कि वे आधुनिक विज्ञान की बातों से किस प्रकार मिलती जुलती हैं और जहाँ कहीं उनमें कुछ विरोध