पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ २० ]

के पीछे क्या होनेवाला है? तुम्हें तो जो जो कुछ तुम्हारे भीतर है, उसके रंच मात्र का ज्ञान हुआ है। क्योंकि तुममें अनंत शक्ति की राशि और आनंद का सागर भरा पड़ा है जिसका तुम्हें ज्ञान ही नहीं है।

‘आत्मा वा अरे श्रोतव्यः’। दिन रात इसका श्रवण करो कि तुम आत्मा हो। इसे दिन रात जपते रहो, यहाँ तक कि यह तुम्हारी नस नस में प्रविष्ट हो जाय, तुम्हारे एक एक विदुं रक्त में भर जाय और तुम्हारे मांस और अस्थि में समा जाय। अपने सारे शरीर में इस आदर्श का भर जाने दो कि मैं अजन्मा, अमर, आनंदमय, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और महान आत्मा हूँ। इसे दिन रात मनन करो, इसे मनन करते रहो; यहाँ तक कि यह तुम्हारे जीवन का अंग बन जाय। इसीका निदध्यासन करो और इसी निदध्यासन से कर्म की उत्पत्ति होगी। जब मन भरा रहता है तब मुँह से बात निकलती है, जब मन भरा रहता है तब हाथ भी काम में चलता है। फिर तो काम होगा ही। अपने में आदर्श को भर लो। जो कुछ करो, उसी पर भले प्रकार चिंतन करते रहो। तुम्हारा काम महत् रूप धारण कर लेगा, उसकी दशा बदल जायगी और उसी चिंतन के प्रभाव से देवखरूप हो जायगा। यदि प्रकृति वा द्रव्य में शक्ति है तो चिंतन में अतुल शक्ति है, वह सर्वशक्तिमान है। इस विचार को अपने जीवन पर चरितार्थ करो, अपने सर्व शक्तिमत्व और महत्व के विचार से परिपूर्ण हो जाओ। ईश्वर के लिये आपके मस्तिष्क में